ज्यादातर यूँ होता है कि आदमी जिसे मान लेता है । awareness-on-article-hindi.उसकी हर बातें अच्छी लगती है । उसके हर शब्द को सही मान लेते हैं । जिसका फायदा वही उठाते हैं । जिसे आप मानते हैं । उसकी ओर ध्यान ही नहीं दे पाते हैं कि वह कितना सही है या फिर गलत है । हमें जो कहा जाता है । वहां तक ही ध्यान रह जाता है ।
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जिसका असर ऐसा है कि मानने वाले धीरै धीरे उन्हीं के विचारों में परिवर्तित हो जाते है । उसे पता भी नहीं चलता है ।कब अपनी मौलिकता खो दी है । कब उसने अपने मानने वाले के हाथों अपना शोषण करवा लिया है । शोषण को भी श्रद्धा से देखते हैं । जो उसकी अज्ञानता में शामिल हो जाते हैं ।
ऐसे मानने की प्रवृत्ति तब उत्पन्न होती है जब लगने लगता है कि किसी के शब्दों में अपनापन, समान विचारधारा के व्यक्ति है , जिसकी क्षमताओं के कायल होना,,, जो शायद ! स्वयं के भीतर नहीं होती है ।
सुधार योग्य बुद्धि
ऐसे व्यक्ति की क्षमताओं से खुश होना स्वयं की अभिव्यक्ति के समान है । ऐसा महसूस होता है ।या फिर अपनी सुविधा में जानबूझकर सोचना छोड़ देते हैं । बुद्धिजीवी लोग ऐसा करते हैं । लेकिन जरूरी नहीं है कि बुद्धिजीवी भी अपने मस्तिष्क को समय-समय पर मांज सके । वो भी आदतन प्रवृत्ति में शामिल हो जाते हैं ।
सतत जागरूकता बहुत कठिन अवस्था है । समयानुसार उचित-अनुचित का फैसला करने की क्षमता की प्राप्ति हर किसी को नहीं मिलती है । ऐसे लोग दुनिया में बिरले ही मिलते हैं,,होते हैं ।
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