पहली बात है कि माता -पिता व समाज को चाहिए articles on womens equality वह अपने बच्चों को शारीरिक संरचना के आधार पर अंतर न करें । हर इंसानों में अपना व्यक्तित्व होता है । जिसके अपने सपने और जीने का आधार होता है । जिससे उसकी पहचान होगी । इस दुनिया में । इसी नजरिए से देखे । बातें करे ।व्यवहार करे ।
ताकि एक लड़की और एक लड़का अपने व्यक्तित्व पर ही ध्यान केन्द्रित कर सके न कि शारीरिक संरचना पर। जिससे भेद उत्पन्न हो ।
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दूसरी बात ये है कि फिल्मी बाजार है जो उसे चाहिए कि वह केवल अंग प्रदर्शन करवा कर उसके स्त्रीत्व को पुरूष के वासनाओं को उजागर करने का माध्यम न बनाए ।जिससे कोई पुरूष अपनी कुत्सित मानसिकता से देखे ।एक औरत को भोग की तरह ।जिससे इंसानों के व्यक्तित्व ( पुरूष और स्त्री में) अंतर न हो ।
तीसरी बात बुद्धिजीवियों को चाहिए कि उच्छृंखलता,, स्वतंत्रता का अर्थ यह नहीं है कि सेक्स का प्रदर्शन का समर्थन/ क्रिया खुले रूप में करे । जिससे देखने वालों की भावनाएं भी जागृत हो जाए । हालांकि ये सबकी स्वतंत्रता है ।
फिर भी इंसान जानवरों से बेहतर है तो इंसान ही बने ।क्योंकि अधिकांश कार्य ऐसे हैं जिसे बच्चे देखकर सीखते हैं । क्योंकि वे बड़ों का नकल ही करते हैं । चाहे अच्छा हो या फिर बुरा !!!!!
---राजकपूर राजपूत''राज''
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