मेरा दर्द कहॉं ठहरता है poem-of-love-

प्रेम बिना जीवन बेकार है !poem-of-love- प्रेमी बिना मन कहीं  नहीं लगता है ! उसकी ख्याल आठों पहर मन में चलता है !उसकी यादों में अजीब सा दर्द होता है ! जिसे भुला नहीं जा सकता है ! हर पल ! जलता है मन , जैसे पतंगा जलता है ! खुशी- खुशी ! पुरे बदन को जला लेता है ! ठीक उसी तरह ! बदन जल जाता है ! उसकी यादों में ! खुशी -खुशी ! कविता   

poem-of-love

मेरा दर्द कहां ठहरता है 

किसे पता है

मेरा दर्द कहॉं ठहरता है

क्यों कोयल सा लरकता है

साहिल किनारे मेरा घर है

एक लहरें उठी और दरकता है

मैं खो जाता हूॅं सागर के विस्तार में

जानने को उस पार क्या है

मेरा मन मचलता है

ऐसा है मेरे सीने में दर्द

जो दिन-रात मेरे साथ चलता है

जहॉं दिखाई दे तस्वीर उसकी

उसके नाम से मेरा बदन महकता है

अब आ जाओ तुम मेरी जिन्दगी 

तुम बिन  ये मन तरसता है !!!

---राजकपूर राजपूत''राज''

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