एक सपना टूटा poem on dream- meregeet

poem on dream- meregeet 

 एक सपना टूटा

वक्त मुझसे रूठा

जिंदगी में लाचारी है

मुझे अपनो ने लूटा

न कह सके न हॅंस सके

जिसका साथ था वहीं छूटा !!!


मंदिर की सीढ़ियों पर बैठा भीखारी 

सपने देखा नहीं करते हैं 

वो देखते हैं 

सिक्के को 

कितने मिलते हैं 

भरपेट भोजन की तलाश 

कटोरी के सिक्के को हिला कर 

अंदाज़ लगा लेता है 

बस भोजन और सिक्के के 

बीच की आशा है 

सपने नहीं 

जो खो जाय 

और राम के नाम पर 

मांगना भूल जाय !!!

poem on dream- meregeet

मेरे सपने 

हकीकत में 

मेरी कविताओं के भाव थे 

जिसमें शामिल करना चाहा 

पूरी जिंदगी की तलाश में 

किसी एक को 

कविता की कोमलता 

उसकी मधुरता और सहजता से 

प्यार दूं 

अहसास कराऊं 

किसी एक को 

जो मेरी कविताओं को समझें 

कोई एक मुझे चाहे !!!!!


जनवरी यूं नहीं आता 

कुछ लोग पिछले साल को छोड़ना चाहते हैं 

कैलेण्डर के पन्ने को पलटना चाहते हैं 

किसी की यादों को 

भूल जाने के लिए 

संकल्प लेकर आता है 

जनवरी 

नया साल बनकर !!!!

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