Poem_दृष्टि ही के दृष्टिकोण का निर्माण करता है । जो धीरे धीरे चरित्र में उतरती हैं । किसी की दृष्टि क्या है ? किसी का दृष्टिकोण जानना है तो उसकी दृष्टि के ग्रहणशीलता में सुकून और बेचैनी को समझना जरूरी है । जो चीजें दृष्टि को सुकून देती है । लोग उसे अपने क्रियाकलापों में प्रगट करते हैं और जो चीजें भाती नहीं है । उससे कतराते हैं । दृष्टि का बाह्य रूप से प्रगट होना चरित्र है । जिसे व्यवहार में प्रगट होने से रोक नहीं सकते हैं ।
Poem_दृष्टि हमारी
न ऊंची न नीची
दृष्टि होनी चाहिए
बल्कि सम होनी चाहिए
यदि ऊंची मानते हो
किसी को
हीनता होगी तुममें
यदि नीची मानते हो
तो अभिमान जागेंगे तुममें
हृदय के भीतर
ये अंतर के भाव
इंसानों से भिन्न
बनाते हैं
जबकि दोनों दृष्टि
द्वेषपूर्ण है
इसलिए सबको सम मानो
खुद के जैसा
और को जानो
जिससे सबमें
जीने का भाव समाहित है !!!!
हमारी दृष्टि Poem_
तुम्हारी दृष्टि ही है
तुम्हारे चरित्र का प्रकटीकरण है
जो चरित्र में है
वहीं दृष्टि में है
जिसे देखा जा सकता है
व्यवहार में !!
Poem_
दृष्टि की ग्रहणशीलता
सुकून और अशांति
के हिसाब से होता है
जिससे सुकून मिलता है
चाहती मिलती है
वहीं दृष्टि पाते हैं
जबकि जो अशांति का भास कराए
नफ़रत के भाव जगाए !!!
---राजकपूर राजपूत
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