देश में बदलाव चाहिए । जो जरूरी है देश के लिए
Article Social critics and you एक ऐसी विचारधारा जो सच को सच कह सकें । जो सियासत से ऊपर हो । अगर गलतियां तुमसे हुई है । उसे स्वीकार करने की क्षमता हो ।ये नहीं कि दूसरों की गलतियां गिना कर खुद को महान बनाने का ।समाज के हित के लिए अपने व्यक्तिगत लाभ को त्याग करने की क्षमता हो । स्थापित हो ऐसी विचारधारा । जो न तुष्टिकरण से उपजी समस्या पैदा करें । गलत को गलत कहने की हिम्मत हो ।
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सियासतदानों से आम जनता में । वर्ना आजकल की प्रवृत्ति है कि नग्नता को देखकर भय खा जाते हैं । क्योंकि वो जानते हैं कि ये वर्ग अपनी मुर्खता से परेशानी पैदा करेगा । इसलिए उनकी नाराजगी का ख्याल रखा जाता है । लेकिन जैसे ही तुष्टिकरण होता है । उसकी मुर्खता बढ़ती जाती है । क्योंकि वो मुर्ख है । वो अपनी मुर्खता को ताकत मानती है । बार-बार झुकाना चाहती है । और झुकते भी है । क्योंकि ऐसा करके सियासतदान मुर्ख की ही चापलूसी करने लगते हैं । जो भी करें उसका ख्याल जरूर रखते हैं ।बाकी लोगों से मतलब नहीं है । क्योंकि वो जानते हैं । एक वर्ग विशेष उसके भी चापलूस है । जिसे मतलब नहीं है । किसी बात की । उसकी उदासिनता नेताओं की मौकापरस्ती है । जिसका फायदा वो बड़ी आसानी से उठाते हैं ।
ऐसे ही बदलाव की और जरूरत है । आलोचना की । जो केवल हिन्दू धर्म के लोगों के लिए ही होती है । बाकी के लिए कहने की हिम्मत नहीं होती है । चंद बुद्धि के बल पर लोगों की धार्मिक भावनाओं का ऐसा अपहास उड़ाते हैं । मानो वह सबसे पवित्र है । जिसकी कोई सानी नहीं है । ऐसे आघात करने की कोशिश करते हैं कि उसका मनोबल टूट जाए । खुद के धर्म को पुजने में हीनता महसूस करें । और जो हीनता महसूस करते हैं । वे खुद ही अपने धर्म के बारे में नहीं जानते हैं । दूसरों के विचारों को सही ठहराते हैं । क्योंकि उसे अपनी गलतियां दिखाई देती है । उस आलोचक की नहीं । उस चिंतन खुद के कमियों पर होता है ।
जबकि यदि गौर से देखें तो सामने वाले केवल आलोचक है । जिसे अपनी गलतियां नहीं दिखाई दे रही है । नफ़रत के कारण । वे दूसरे इंसानों की बुराई आसानी से कर रहे हैं । एक बार उसे भी गलतियों का अहसास तो कराओ । दुबारा हिम्मत नहीं होगी,,सवाल उठाने की । लेकिन हम ऐसा नहीं कर पाते हैं ।
क्योंकि हम पहले से ही खुद के प्रति उदासीन है । एक आलोचक को याद रखना चाहिए दूसरों की आलोचना के सुधारात्मक कर सकते हैं । नफ़रत के रूप में नहीं । वर्ना आप किसी से ऐसी उम्मीद नहीं करें कि आपसे वो भाईचारे के व्यवहार करेंगे । मुर्ख के एक बार बनते हैं । बार-बार नहीं । एक बार तुम्हारी प्रवृत्ति समझ गए तो दुबारा नज़रों में चढ़ने के लिए वक़्त लगेगा ।
समर्थन उन्हीं का करें जो पूरी मानवता के लिए हो । वर्ना आजकल के बुद्धिजीवियों को देश से डर लगता है । तालिबान से नहीं । और उसके समर्थक ऐसे मानते हैं । जैसे कोई महान विचारक हो ।
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