अवहेलना भाग ३

दीपक, कल्याणी को देखने लगा । वह तैयार होने में व्यस्थ थी । उसने सहज ही प्रश्न पूछे थे,,,। दीपक का उतरा हुआ चेहरा देख के ।  

कल्याणी के चेहरे पे खरीददारी की खुशी थी । उसके पूछे जाने पर दीपक चुप ही रहा । बस बनावटी हॅ॑सी चेहरे पे लाया । कुछ देर बैठें रहने के बाद कल्याणी को लगा कि दीपक कुछ बातें छूपा रहा है ।भला उसे कहने मेंं क्या तकलीफ़ है ! मैं कोई गैर नहीं । दीपक को ध्यान से देखने लगी । जिसे दीपक भी समझ गया कि कल्याणी क्या पूछना चाहती है । 

" शालिनी भी जाना चाहती है । "

"तो क्या हुआ ? मैं भी साथ में चली जाउंगी ।" कल्याणी झट से कही ।

कुछ देर चुप रहने के बाद फिर बोली :-

" शालिनी मेरे साथ जाना नहीं चाहती क्या ? "आश्चर्य से पूछी । 

""यही तो है उन लोगों में,,, जिसे समझा नहीं सकते हैं । कही जाओ तो उन लोगों में फुसफुसाहट शुरू हो जाती है । अजीब सा मुंह बना लेते हैं,,, मानों कोई बड़ी बात हो गई हो ।   ऐसे में असमंजस सा महसूस होने लगता है । ""

"आपको क्या लगता है कि मैं मत जाऊं, तुम्हारे साथ में ।" 

"मैंने कब कहा !  वैसे भी तुम दोनों की बनती नहीं । ले भी जाऊंगा तो भी तुम दोनों असहज महसूस करोंगे । मुंह फूला हुआ रहेगा । ऐसी स्थिति में भला जाने में क्या मजा आएगा ।मेरा तो यही कहना है कि हम लोग किसी दूसरे दिन चलें जाएंगे । वैसे भी तुम जाना नहीं चाहती थी,, इसलिए तुम्हें ज्यादा ... ।" 

"ऐसे सोचते हो तो फिर तैयार क्यों करवाया । मैंने तो नहीं कही थी कि मुझे ले जाओ । "उसकी बातों को काटते हुए बोली ।

दीपक कल्याणी की नाराजगी को समझ रहा था । गलती किया जो इसे कह दिया । 

कभी सोचता कि घर वाले भी वर्चस्व की लड़ाई  लड़ते हैं । छोटी-छोटी बातों पे । कुछ देर तक बैठे रहे,, चुपचाप । कमरे में अजीब-सी खामोशी पसर गई थी । जैसे कमरे में कोई ना हो । 

कुछ देर बाद शालिनी तैयार हो के आ गई । 

"चलो ! भइया । मैं तैयार हो गई हूं । तुम नहीं जा रही हो भाभी । "बड़ी चतुराई से बात कही । जैसे उसको अपनी भाभी की बहुत चिंता है । 

कल्याणी उसके चेहरे को देखने लगी । जो कह तो रही थी जाने के लिए लेकिन उसकी मुस्कराहट बता रही थी कि उसे अपमानित करने के लिए कही है । 

दीपक सोचने लगा कि माॅ॑ भी अजीब है । मैंने किसी को कुछ कहा भी नहीं और शालिनी को भेज दिया । पता नहीं क्या चाहती है ?? क्यों व्यर्थ के बंधनों में बांधती है ? बेवजह परेशान करना ।

"जाना तो चाहती हूं लेकिन गाड़ी में तीन सवारी बैठने में परेशानी होगी । मेरा बच्चा भी छोटा है । इसलिए तुम ही लोग जाओ । मैं कभी और देखूंगी ।" 

"मैं जाना नहीं चाहती लेकिन मेरी सहेली का जन्मदिन है । जिसका गांव बेमेतरा के पास ही है । मैं वहीं रुकूंगी भइया को तैयार होते देखी तो सोच लिया कि मैं भी चली जाऊं ।" 

"कोई बात नहीं,,जाओ ! किसी और दिन हम लोग चलें जाएंगे ।'' कल्याणी ने उदासीनता के साथ कहीं । 

दीपक को लगा कि वह आज कम-से-कम इस असमंजस से तो बच गया कि मुझे ज्यादा कुछ किसी को कहना नहीं पड़ा । कल्याणी को बाद में समझा लूंगा । लेकिन अपने घरवालों को समझाने में दिक्कत होती है । उसके दिल को तसल्ली हुई ।  

कल्याणी, घर के कामों को करने के लिए चली गई । जिसे वो अपनी देवरानी के साथ हमेशा करती थी । 

हालांकि दोनों बहुओं के बीच काम निर्धारित थी । सुबह का खाना कल्याणी बनाती थी और शाम के वक्त उसकी देवरानी । कल्याणी कभी भी अपनी देवरानी से ईर्ष्या या जलन नहीं की । उसके सभी कामों में मदद करती थी । रसोई में जाकर कभी- कभी वह खुद ही खाना बना देती थी । आखिर उन लोगों की शादी को साल भर भी नहीं हुईं है । कैसे उसको परेशान करती । नवविवाहिता के भी अपने सपने होते हैं । एक दूसरे को जितना जल्दी जानेंगे,,उतने ही उनका जीवन सरल होगा ।  अपनी जिंदगी जीने का अधिकार सबको है । उम्र गुजर जाने के बाद क्या फायदा,,,? कल्याणी उसे ज्यादा बंधनों में बांधने की कोशिश नहीं करती । 

 घर के लोगों की आदत,, व्यवहार की बातें बताते रहते थे ।हर घर की अपनी- अपनी कहानी होती है । जिसे पराएं घर की बेटी को सीखने में थोड़ी दिक्कत होती है । कल्याणी सबकी भावनाओं का कद्र करना जानती थी । जितनी जल्दी समझेंगी,उतनी ही सहज रहेगी । आखिर बड़ी बहू भी तो छोटी सास होती है और सास को माॅ॑ जैसी होनी चाहिए । हालांकि उसकी सास ऐसा व्यवहार नहीं करती । 

कुछ देर बाद  गाड़ी की चलने की आवाजें सुनाई दी । जिसे सुन उसके मन में कुछ सवाल उठने लगे । वह समझ नहीं पा रही थी कि उसे कैसा महसूस हो रहा था । छोटे से काम भी करने का मन नहीं हो रहा था । अपनी देवरानी को यह कहके आ गई कि उसे आज अच्छा नहीं लग रहा है । मैं थोड़ा आराम कर लूं । फिर आके मदद कर दूंगी । 

अनिता (देवरानी) अभी तक अच्छी है । बाद में किसी के बहकावे में भले ही बदल जाएगी । अभी तक उसके हृदय में अंतर का भाव नहीं दिखाई देती थी ।  मासुम है बेचारी ।

 अपने कमरे में आकर लेट गई । उसे बहुत दुःख हो रहा था । कुछ ही पल में वह क्या सोच ली थी ।इतनी जल्दी लोग नहीं बदल जाते, और वह कितनी जल्दी विश्वास भी कर लेती है । हमेशा दो मीठे बोल के लिए तरस जाती है । जहां प्रेम दिखते हैं, उसी समय भरोसा हो जाती है ।  जितनी खुशी से सोची थी,, उतना ही दुःख हो रहा था । 

बात जाने की नहीं थी । दुःख तो इस बात का था कि दीपक के चेहरे पर मलाल नहीं था ।  उसने समझाते समय जो उदासीनता दिखाएं थे, वो जाते समय दिखाई नहीं दी । जैसे मैं ही सब पर बोझ हूं । यदि मेरे बारे में ख्याल करते तो उसके चेहरे पर खुशी नहीं झलकती । शायद ! उसको जाना अनिवार्य था । चाहें कोई भी साथ में हो । 

छोटे- छोटे व्यवहारों से ही प्रेम की पहचान हो जाती है । दीपक के हृदय में जो कहीं दिखाई नहीं देती है । 

शायद !..

                                               क्रमशः-

---राजकपूर राजपूत''राज''

अवहेलना भाग 3


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