जिसे सुनकर गिरिजा के हृदय गदगद हो गया । उसके भीतर अपने बेटे के लिए ममता उमड़ रही थी । आखिर उसका बेटा है । वो नहीं रखेंगे तो कौन रखेगा उसे । गांव वाले व्यर्थ ही कहते हैं कि तुम्हारा बेटा बुरे हैं । फिर एक ही पल में उसका चेहरा सुर्ख हो गया । डर गई । इतने दिनों बाद उसकी सुध लेने क्यों आया है..?
पति की मृत्यु के बाद से ही गिरिजा गांव के स्कुल में रहती है । जो टूट चुकी है । गांव के बच्चों के लिए अलग से स्कुल बन गया है । जहाॅ॑ सभी पढ़ते हैं । वो जहाॅ॑ रहती है, उसकी छत जगह-जगह से टूट चुकी है । बस एक कोना ही थोड़ा सा ठीक था । जहाॅ॑ गिरजा रहती थी । पर्दा डाल के ।
गिरिजा का पति बहुत अच्छे इंसान थे । गांव में उसका बहुत मान- सम्मान था । सभी के दुःख- सुख शामिल हो जाते थे । पति के साथ रहते गिरिजा को किसी प्रकार की तकलीफ़ नहीं हुई । लेकिन भगवान भी अच्छे इंसान को जल्दी बुला लेते हैं । उससे भी किसी की खुशी देखी नहीं जाती है । पति के कर्म ही था । जो गांव वाले गिरिजा को इतना मानते थे ।
पति की मृत्यु के बाद तो गिरिजा के ऊपर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा । घर में पूछ परख करने वाले कोई नहीं था । बेटा अपनी जिंदगी में इतने व्यस्त थे कि एक ही घर में रहने के बाद भी उसे कोई खबर नहीं । माॅ॑ खाना खाई की नहीं । फिर भी गिरिजा खुश थी । बेटे की खुशियाॅ॑ देख के । बुढ़ापे में और क्या चाहिए .! एक कोने में पड़ी रहती । जब खाना देते तो खा लेती ।
लेकिन बेटे को यह भी मंजूर नहीं था । उसकी खुशियों में ऑ॑खों की किरकिरी थी वह । बहू खाना सरका के देती थी । कभी प्रेम से नहीं बोली । कभी गिरिजा कुछ बोलती तो बहु लड़कों जैसे बकना शुरू कर देती ।केवल हाथ उठाना ही बच गया था । कुछ लोग कहते हैं कि ज्यादातर सास कभी माॅ॑ नहीं बनती..,गलत है । बहू भी तो कभी बेटी नहीं बन सकती है ।
आखिर एक दिन बहू ने हाथ उठा ही दिया । बेटा यह सब देख रहा था । कुछ भी नहीं कहें । मानों उसको भी अच्छा लग रहा था । माॅ॑ बेबस सब सहती रही ।
उसके बाद से तो छोटी सी बातों में ऐसा करने लगी ।
जिस घर में बेटा-बहू बुरे हो वहाॅ॑ बुढ़ी ऑ॑खें पोतों पर टिक जाती है लेकिन यहाॅ॑ सभी एक ही चाल के थे ।
एक दिन तंग आकर घर से निकल गई और स्कूल की टूटी हुई छत के कोने में सहारा लिया । गांव में ही भीख मांग कर दिन गुजारने लगी । सभी उसकी हालतों को समझते थे । अपने बेटे के घर में घुटन महसूस करते थे लेकिन यहाॅ॑ नहीं । कोई ना कोई उसके पास बैठने और बातचीत करने आ जाते थे । गांव के मुखिया भले मानुष था। जिसने गिरिजा का पैंशन योजना में नाम जुड़वा दिया । उसने अपने खाली मकान में रहने के लिए भी कहा लेकिन वह नहीं मानी । गांव वालों के कारण ही उसे अपनी जिंदगी मेंं कुछ तो शांति मिल जाती थी ।
इससे पहले गांव वालों ने आजूराम को बहुत समझाया कि बुढ़ा शरीर कितने दिन तक चलेगा । पड़े रहने दें , एक कोने में । आखिर उसका ही जमीन जायदाद खा रहे हो ।
गांव वालों के समझाने पर आजूराम दोष अपनी माॅ॑ पर ही डाल देते । कहता-
कुछ भी सहती नहीं । दिनभर बड़बड़ाती है और मैंने कब अपनी माॅ॑ से झगड़ा किया है । ये तो सास -बहू की लड़ाई है ।
फिर भी सुलह तो कर सकते हो । ऐसे बचने के तरीके को क्या कहें ।
जानबूझकर कर अनजान बन जाते । गांव वाले सब समझ गए । आजूराम के मन में क्या है ..?
इतने दिनों के बाद आजूराम आखिर अपनी माॅ॑ को लेने क्यों आईं है.? गांव वालों को शंका हो रहा था । गिरिजा को भी यही लगता था । आखिर अब क्यों..?
फिर सोची मेरी जिंदगी का कोई भरोसा नहीं । जितने दिन बचे हैं ।उसे अपने बच्चों के बीच गुजार दूॅ॑ । समय तो काटना है और चली गई ।
गिरिजा कभी भी अपने बेटे को छोड़ने के बाद घर की ओर निहारें नहीं थे । निहार के भी क्या पाती..? उसके पुराने घर में पति की यादें दर्द देती थी । जो उसको बहुत रूलाती थी ।
आजूराम और उसकी पत्नी की आदत में बहुत बदलाव आ गए थे । घर में जाते ही बहू ने चरण स्पर्श किया । जो कभी मायके से आने के बाद नहीं किए थे । गिरिजा कई संशय में डूब जाती । आखिर ऐसा क्यों कर रहे हैं .?
घर में बहुत कुछ बदल गया था । बहू गहने से सजी हुई थी । टीवी, चार-पांच आदमियों के बैठने के लिए कुर्सी , आलमारी और भी उनके ज़रुरत की चीजें थी ।घर के एक कोने में और मकान बना रहा था । जिसकी नींव की खुदाई हो चुकी थी । जो गिरिजा को याद दिला रहे थे कि सब उसके बिना कितने खुश हैं ।
गिरिजा के दिन बड़े आराम से गुजरने लगी । बहू प्रेम से खाना खिलाती थी । बातें भी मीठी-मीठी करती थी । कुछ दिन ही बीते थे । एक दिन आजूराम ने एक कागज में दस्तखत करवाया, फोटो भी खिचवाया ।जहाॅ॑ पर घर के लिए नींव खोदे थे ।
उस दिन उसको समझ आ गई कि शासकीय आवास योजना उसके नाम पर आया है । इसलिए यह सब कर रहे हैं । उसका मन टूट गया । एक पल उन लोगों के साथ रहना भारी पड़ रहा था । तुरंत ही वहाॅ॑ से चली जाएं। फिर खुद को समझाती कि आखिर मेरा ही तो बेटा है । कितने दिन की जिन्दगी बचीं है । जब तक प्रेम से बातें करते हैं । रह लेती हूॅ॑ । उसके बाद तो अपना पूरा गांव और मेरा टूटी हुई छत है.. । इन लोगों की आदत सभी जानते हैं । इसलिए यहाॅ॑ गांव बस्ती के लोग नहीं आते । वहाॅ॑ मेरे पास तो..! सोचते ही उसकी ऑ॑खों के कोर में पानी झलक पड़े ।
दिन गुजरने में समय कहाॅ॑ लगता है । उसका आवास बन के तैयार हो गया । बेटा-बहू भी धीरे-धीरे अपने स्वभाव में आने लगे । कुकूर(कुत्ता) के पूंछ कभी सीधे नहीं होते है चाहे लाख जतन कर लो । बात बढ़ जाने से पहले ही मुझे अपने जगह पर चलें जाना चाहिए । गिरिजा सोचने लगी ।
आखिर अपने टूटी फूटी घर में आकर गिरिजा बहुत खुश थी । दो चार लोग उससे मीठे बातें तो करते थे । दूसरे दिन मुखिया जब देखा तो कहने लगे-
"कब गांव से आ गई बुढिया । ज्यादा दिन तक नहीं रख सकें ।"
""अपनी मर्जी जब चाहे आ जाएं ।"
"यही मरोगे और अग्नी दाह संस्कार मैं ही करूंगा ।"
"अब तुम लोग पर ही भरोसा है बेटा"
मुखिया कुछ समय बैठें । फिर चले गए । एक वही तो था गिरिजा के जो दवा दारू से लेकर मुसीबत में भी साथ देते थे । पैंशन से मिलने वाले पैसों को उसके पास ही जमा करते थे ।
दिन गुजरते गए शारीरिक और मानसिक रूप से दबे शरीर टूटने लगे । एक दिन बस्ती से लौट रही थी तो पैरों में ठोकर लगने से गिरिजा मूॅ॑ह के बल गिर गई । जो फिर ना उठा सकें । गांव भर शोक में डूब गए । पूरे बस्ती में मुखिया दस-बीस रुपए करके पैसा इकट्ठा किए और अपने पास रखें गिरिजा के पैसों को मिला के बहुत पैसा हो गए । उसके अंतिम संस्कार के लिए ।
मुखाग्नि देने के लिए उसके बेटे को बुलाया गया । जो केवल एक व्यवहारिक था । जिससे गांव बस्ती वाले खुश नहीं थे । गांव वाले उस टूटी हुई छत के सामने से गुजरते हैं तो गिरिजा की याद जरूर करते हैं ।
-----रराजकपूर राजपूत'राज'
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Nice
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