avahelna-bhag-ak-घर में सब कुछ था । जमीन जायदाद से लेकर भरा पूरा परिवार । जहाॅ॑ सास- ससूर, एक देवर-देवरानी, एक ननद । ननद अभी काॅलेज की पढ़ाई-लिखाई कर रही थी।सभी लोग आपस में हॅ॑सते गाते थे ।घर में आधुनिक जरूरत के मुताबिक सभी सुविधाएं थी ।बाहर से देखने पर घर बहुत सुन्दर था ।
उसी घर में कल्याणी को अजीब-सी अकुलाहट थी, अशांति महसूस करते थे । उस पूरे घर में उसकी बातों को सुनने वाला कोई नहीं था । वो सबकी सुनती थी । लेकिन जब वो अपनी दिल की बात कहती तो उसे ऐसा महसूस हो जाते थे कि सभी लोग यूॅ॑ ही बहला रहे हैं । सुनते कम थे ।हाॅ॑..हूॅ॑ में सब जवाब देते थे । अंदर ही अन्दर वो अपमानित महसूस कर जाती थी । उसकी इस तरह से अवहेलना करने से वो खुद को बहुत तन्हा महसूस करते थे ।
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कल्याणी में कोई ऐब नहीं थी ।रूप- रंग, चाल-ढाल सब सही थी । ननद और देवरानी तो इसी बात पर जलते थे । क्योंकि ननद, छोटे भाभी को ही मानती थी और उसकी जलन को सहारा उसकी माॅ॑(कल्याणी की सास) देती थी । जिसका लगाव छोटे लड़के की ओर था। जिससे लगाव हो,प्रेम हो तो सभी गलतियां भी मीठी लगती है। कल्याणी बस गरीब घर से आई थी ।दहेज में कुछ नहीं लाई । उसके पिता जी के पास जमीन जायदाद नहीं है । घर भी मिट्टी का बना हुआ है । आधुनिक जरूरत की सुविधाएं नहीं हैं।
माॅ॑-बाप मेहनत-मजदूरी करके जीवन बसर करते हैं । इन्हीं सब बातों पर उसके पीठ पीछे बुराई करते थे । कहती बाप के पास इतना जमीन जायदाद तो है ही नहीं जो उसे अपने साथ कुछ दिन भी रख सके । ऊपर से दो बेटी और बची है । शादी करने के लिए , नाक कट जाएगी । बिरादरी में ।हॅ॑सती और कहती क़िस्मत वाली है जो हमारे घर में आ गई। जब कल्याणी जाती तब इधर उधर की बातें शुरू कर देते थे। इसी बात का मज़ाक उड़ाते थे। जिसे कल्याणी सहन नहीं कर पाती थी । जब भी दो बातें होती तो सीधी मायके में रूकती थी ।
वे लोग गांव बस्ती में झूठी शान का दिखावा करते थे । उन लोगों के लिए जमीन जायदाद ही सब कुछ था। इसी बात पर कल्याणी कभी कभी बोल पड़ती थी ।
जब दीपक कल्याणी को देखने गए थे।तब उसका भी मन घर-द्वार को देख के ठिठका था । लेकिन कल्याणी के रूप में मोहित हो गए और शादी के लिए तैयार हो गया।
दीपक इस बात को तो मानते थे कि उसकी पत्नी बहुत सुंदर है। उसे सबके सामने कहने में गर्व महसूस होता था। लेकिन आकर्षण बाहरी सतह को छूती है । उसने कभी भी उसके भीतर के पीड़ा को महसूस नहीं कर पाए । उसके लिए तो सुंदरता सजावट का सामान है । घर को सजाने के लिए । जिसे जब चाहें निहार ले । अपने इच्छा अनुसार । नहीं तो किसी खूंटी पर टांग दे । जब फूर्सत मिला साफ कर लो और उपयोग कर लो ।
दीपक दिन भर इधर-उधर घूमते रहते थे । कभी घर के कामों से,कभी मौज मस्ती के लिए । खुद को अति व्यस्त रखते थे ।शाम को शराब ज़रूर पीते । अपनी आदत के समर्थन में पीते- पीते बहुत बड़े दार्शनिक हो जाते थे ।क्या रखा है.. ? जिंदगी में ..! खाओं पीओं और मौज मस्ती करों ..! यहाॅ॑ से क्या ले जाएंगे ..? बड़े शान से खाते पीते थे । लेकिन सिर्फ अपने लिए।
कल्याणी जब कहती तब वह उसे ही समझाना शुरू कर देते थे । तुम क्या जानो, जिंदगी का मजा ।
ये भी कोई मजा है जो नशा चढ़ते ही सो जाते हैं । किसी चीज़ की खबर नहीं । मजा करना है तो होश में रहो । उसे हृदय में सम्भाले । खुशी के लिए तो घर- परिवार है । बीबी- बच्चें हैं । उसके लिए समय नहीं। कल्याणी सोचती ।
दीपक से रात में ही बातें होती थी। वो भी अपनी भूख की वजह से । उस समय बड़े प्यार से बातें करते । जब जरूरत होती थी । फिर पलट के सो जाते थे । उसकी इस आदत को कल्याणी अच्छी तरह से जानती थी ।
आखिर एक दिन जब दोनों अपने कमरे में बैठे थे तब कल्याणी अपने मन की बात दीपक से कही:-
"दीपक मुझे घर बहुत सुना -सुना लगता है। तुम भी दिन भर इधर-उधर रहते हो । घर में न माॅ॑ जी ढंग से बातचीत करते हैं । न कोई और । कम से कम प्रेम से बोलने में क्या जाता है, किसी का।"
"छोड़ो ना ! उन लोगों की बात । मैं तो हूॅ॑ । "
"कहाॅ॑ घर में रहते हो दिनभर । आज तीन साल हो गए शादी को हुए । कुछ काम की वजह से और कभी यूॅ॑ ही घुमते रहते हो । मैं भी इंसान हूॅ॑ । मुझे भी तो एहसास हो कि इस घर में मेरा भी कोई है । तुम पर भरोसा ना करूं तो किस पर करूं । कौन है यहाॅ॑..? "
"कैसे भी करके शाम को तो घर पर ही रहता हूॅ॑ और अपना बच्चा भी है । उससे बातें किया कर,। "
"घर में रहने भर से क्या होता है और इस छोटे बच्चे से क्या बात करूंगी !! कभी तुम, मुझसे प्रेम से बातचीत करते हो ..? जब तुम ही नहीं समझते तो ये दूध पीता,मासुम क्या समझेगा ! मुझे तुम्हारे घर परिवार से शिकायत नहीं है । वो मुझे क्यों मेरे माॅ॑-बाप की गरीबी याद दिलाते हैं .?समझ तो गए हैं । गरीब है. । फिर भी ..!
"नेगलेक्ट करना भी सीखों । कुछ लोगों को कभी नहीं समझा सकते । उसके पीछे नहीं पड़ते । "
"कितना करे.! तुम्हारी माॅ॑ तो कभी भूलती नहीं है। मेरे मायके को । हमेशा मुझे यहीं रहना । खुद तो कहती हैं । साथ में दूसरों को भी सीखाती है । तुम ही मेरे साथ रहते तो शायद मुझे ये अहसास नहीं होता । मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता । लेकिन..!"
"मैंने कहा ना.! नेगलेक्ट करों ..! अब सो भी जाओं .! कभी और बात करेंगे । "
और दीपक अपने पलंग पर मुॅ॑ह फेर के सो गया । जैसे उसे कोई मतलब ही नहींं । यह सब देख के कल्याणी का दिल टूट गया । जिससे भरोसा.. उम्मीद थी , जब वो ही ना समझे तो किससे शिकायत करें ! कौन सुने ..? और गहरी सोच में डूब गई । क्यों एक औरत ही दूसरे औरत की तकलीफ़ नहीं समझती ..? क्यों हमेशा साथ रहने वाले भी भूलें जज्बातों को समझने की कोशिश नहीं करते हैं..? सोच ही रही थी । तभी उसके बच्चे ने रोना शुरू कर दिया । जिसे थपकी लगाते हुए कब नींद पड़ी, उसे ख़बर ना रही !!!
क्रमशः........
____ राजकपूर राजपूत 'राज'
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