Letter Without Address Novel Part Two
सुबह की हवा में एक अनजानी बेचैनी घुली हुई थी। सूरज अभी पूरी तरह निकला भी नहीं था, पर जोहन कॉलेज के मैदान की ओर चल पड़ा था। चारों ओर ओस की बूंदें घास पर चमक रही थीं, जैसे किसी ने मोतियों की परत बिछा दी हो।
हर कदम के साथ उसका दिल थोड़ा तेज़ धड़क रहा था।
शालिनी की बातें रातभर उसके कानों में गूंजती रहीं —
“बरगद के नीचे ज़रूर जाना... वहाँ तुम्हें जवाब मिलेगा।”
Letter Without Address Novel Part Two
वह पेड़ तक पहुँचा। चारों ओर सन्नाटा था। सिर्फ़ हवा की हल्की सरसराहट और पक्षियों की धीमी चहक। उसने चारों ओर नज़र दौड़ाई — और तभी उसकी नज़र पड़ी — एक नीला लिफ़ाफ़ा, पेड़ की जड़ों के पास रखा था।
उसका गला सूख गया। उसने लिफ़ाफ़ा उठाया।
कागज़ पर वही परिचित खुशबू थी... वही साफ़, गोलाई में झुकी हुई लिखावट —
“प्रिय जोहन,
कभी-कभी दिल की बातें शब्दों से नहीं, खामोशियों से कही जाती हैं।
तुम हँसते हो, लेकिन तुम्हारी हँसी में जो अधूरापन है — वो कोई अनजान नहीं समझ सकता।
मैंने तुम्हें देखा है... हर दिन, हर पल।
तुम्हारे रंग, तुम्हारे शब्द, तुम्हारा सन्नाटा — सब मुझे याद हैं।
मैं वो हूँ, जो तुम्हारे करीब थी... पर तुमने कभी ध्यान नहीं दिया।
आज अगर तुम ये पत्र पढ़ रहे हो, तो समझो — मैं तुम्हारे सामने ही हूँ।”
जोहन ने चारों ओर नज़र दौड़ाई — मैदान में अब सूरज की किरणें पूरी तरह फैल चुकी थीं। हवा में हल्की गर्माहट घुल गई थी।
और तभी — पीछे से किसी के कदमों की आहट आई।
वह पलटा —
शालिनी खड़ी थी।
उसके हाथ में वही नीले रंग का पेन था, जिससे वे सभी चिट्ठियाँ लिखी गई थीं।
जोहन के होठों से शब्द नहीं निकले।
“तुम...?”
शालिनी ने उसकी ओर देखा — उसकी आँखों में झिझक नहीं थी, बस एक सुकून-भरी सच्चाई थी।
“हाँ, मैं ही थी, जोहन।”
कुछ पल तक दोनों के बीच सिर्फ़ खामोशी रही। हवा जैसे थम गई हो।
फिर शालिनी बोली —
“तुम हमेशा दूसरों के लिए हँसते रहे, मज़ाक करते रहे... लेकिन अपने दिल की दीवार के पीछे खुद को छिपा लिया।
मुझे बस इतना करना था — तुम्हें तुम्हारा असली चेहरा दिखाना।
वो जो प्यार करने से डरता है, पर महसूस बहुत गहराई से करता है।”
जोहन की आँखों में नमी उतर आई।
“पर... तुमने बताया क्यों नहीं?”
शालिनी हल्के से मुस्कुराई —
“क्योंकि अगर मैं सामने से कहती, तो शायद तुम हँस देते... और इस कहानी का जादू खत्म हो जाता।”
जोहन के होंठों पर हल्की मुस्कान आई।
उसने धीरे से कहा —
“तो क्या अब ये कहानी खत्म हो गई?”
शालिनी ने सिर हिलाया,
“नहीं... अब तो बस शुरू हुई है।”
बरगद की छाँव में दोनों खामोश खड़े रहे — जैसे समय कुछ पल के लिए रुक गया हो।
पेड़ों के बीच से आती हवा अब पहले से कहीं ज़्यादा मधुर लग रही थी।
और वहीं, कॉलेज के उस हरे-भरे मैदान में,
एक रहस्य ने प्रेम का रूप ले लिया।
दोनों घंटों तक एक-दूसरे के साथ थे, लेकिन एक भी शब्द नहीं बोले। उनके बीच सिर्फ एक गहरी खामोशी थी। यह खामोशी बोझिल नहीं, बल्कि सुकून देने वाली थी — ऐसी जो दिल की सारी बेचैनियों को धीरे-धीरे शांत कर रही थी। बाहर से देखने पर जोहन एक खुशमिजाज और मिलनसार इंसान लगता था। वह हमेशा मुस्कुराता, लोगों से बातें करता और हँसी-मजाक में रहता। लेकिन उसके अंदर एक ऐसा खालीपन था, जो हर पल उसे किसी कमी का एहसास कराता था। यह अधूरापन उसे अंदर से तोड़ता जा रहा था, हालाँकि वह उसे कभी ज़ाहिर नहीं होने देता था। उस दिन की खामोशी शायद उसके भीतर चल रही उसी उथल-पुथल को थोड़ी राहत दे रही थी।
"तुम इतने दिनों तक खामोश क्यों रहीं... जब मुझे चाहती थीं तो?" जोहन ने आखिरकार उस चुप्पी को तोड़ा, जो दोनों के बीच दीवार बन रही थी।
शालिनी ने नज़रें झुका लीं। उसकी आवाज़ धीमी मगर यकीन से भरी हुई थी, "कह सकती थी... मगर चाहत जब धीरे-धीरे दिल में उतरती है, तो जड़ें गहरी होती हैं। वही प्यार सच्चा होता है — जो वक्त लेता है, पर फिर कभी नहीं डगमगाता।"
जोहन की आंखों में वो सारी अनकही बातें उमड़ आईं, जो बरसों से दिल में दबी थीं। "तुम्हारी समझदारी, सादगी और तुम्हारी गहराई... जाने कब से मुझे अपनी ओर खींचती रही थी । पर डर बस इसी बात का था कि कहीं तुम कह न दो कि दुनिया जैसी तुम भी निकले — जो प्यार को खेल समझता हैं।"
एक पल ठहरकर उसने आगे कहा, "भावनाएं तो हर किसी के पास होती हैं, शालिनी... लेकिन उन्हें निभाने , प्रदर्शन करने का तरीका ही बताता है कि कौन वाकई शरीफ़ है और कौन सिर्फ मुखौटा लगाए हुए है। यही से शराफ़त का चोला ओढ़े खुद की भावनाओं को दबाने लगते हैं । समझ तो हम दोनों ही रहे थे एक-दूजे को, पर शब्दों की सीमा और सम्मान की मर्यादा ने हमें मौन कर दिया।
तुम्हारा मुझे स्वीकार लेना — यही मेरे लिए पर्याप्त था।"
शालिनी चुप रही, पर उसकी निस्तब्धता में मौन स्वीकृति की गूंज थी, जिसे केवल दिल ही सुन सकता था।
"मैं जा
रही हूं।" शालिनी अचानक से कहीं ।
"क्यों ?"
क्रमशः -
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