सपनों की बारिश कहानी Dream Rain Story
लगातार तीन साल के सूखे ने ज़मीन की नमी क्या छीनी, परसूराम के चेहरे पर भी झाइयाँ ला दीं। वह हर साल सोचता था—बेटी की शादी करूँगा, लेकिन बारिश ने उसके अरमानों को कभी खिलने नहीं दिया। ज़मीन-जायदाद इतनी भी नहीं थी कि बेचकर बेटी की शादी की जा सके; बेच देगा तो खाएगा क्या? उसके अपने जीवन की भी तो ज़रूरतें थीं।
इसीलिए घर-खर्च चलाने के लिए वह परदेस चला जाता था, जहाँ से कुछ पैसे कमा लाता था, जिनसे केवल घर का खर्च ही निकल पाता था।
इस साल वह घर पर ही रुक गया, यह सोचकर कि यदि कोई बढ़िया सा रिश्ता आएगा, तो बेटी का हाथ पीला कर देगा। वह अपनी पत्नी गिरजा से कहा करता था,
“इस साल बारिश अच्छी हो जाए, तो बेटी की शादी धूमधाम से करूँगा।”
Dream Rain Story
उसकी बेटी बहुत सुंदर थी। जब परसूराम ने उसकी शादी की चर्चा गाँव में की, तो लोगों ने उसे अच्छे-अच्छे रिश्ते बताने शुरू कर दिए। यह सुनकर परसूराम भीतर ही भीतर खुश होता था, लेकिन उसे इस बात की चिंता भी थी कि लगातार तीन साल से सूखा पड़ा है, तो इस साल क्या होगा? फसल आने में अभी काफी दिन बाकी थे,
कई बार फसलों में पूरी खाद डाल देने के बाद भी, आखिरी पानी न मिलने से फसल बर्बाद हो जाती है। जिन किसानों के पास पानी का दूसरा कोई साधन नहीं होता है, वे लाचार होकर अपनी फसल को सूखते देखते रहते हैं। इसी वजह से उसने किसी भी रिश्ते के लिए ‘हाँ’ नहीं की।
फिर भी गांव का ही एक व्यक्ति इंद्रा ने जिंद करके एक रिश्ता ला ही दिया । यह कहकर कि घर-परिवार अच्छा है । बेटी सुख करेंगी । परसूराम ने भी यह कहकर हां कह दी कि यदि बारिश नहीं होती है तो इस साल शादी नहीं हो पाएगी ।
"ठीक है।" इंद्रा ने कहा ।
रिश्ता पक्का हो जाएगा—यह बात इंद्रा के मन में कहीं पहले ही से उजास की तरह चमक रही थी। उसे विश्वास था कि जगन और उसका लड़का, लड़की को देखते ही मन में बसा लेंगे।
और सचमुच, वही हुआ। लड़की की सरल मुस्कान और उसके पिता का सादगी से भरा हुआ व्यवहार देखकर जगन का मन जैसे खिल उठा। लड़की भी लड़के को पसंद कर ली । अब और क्या चाहिए था । वह तुरंत परसूराम से विवाह की तारीख तय करने की बात करने लगा।
यह सुनते ही परसूराम ने धीमे स्वर में कहा, “अभी तो मैं शादी नहीं कर सकता… हाँ, यदि अंतिम समय तक बारिश हुई, तो मैं अवश्य तैयार हूँ।”
इंद्रा ने कुछ खिन्न होकर कहा, “बेटी की उम्र यूँ ही निकलती जा रही है, और तुम अभी भी बारिश का आसमान टटोल रहे हो। यह ठीक नहीं है।”
परसूराम ने गहरी साँस ली। “सब ठीक है, पर मेरी भी कुछ मजबूरियाँ हैं…” इतना कहकर वह मौन हो गया।
कमरा कुछ क्षणों के लिए जैसे साँस रोककर खड़ा हो गया। सबने निगाहें झुका लीं, और फर्श पर बिछी खामोशी और गहरी होती गई।
तभी जगन ने नम्र स्वर में कहा, “इसमें परेशानी की कौन-सी बात है? लड़की हमें पसंद है—बस पसंद है। जीवन की उलझनें तो हमेशा साथ चलती हैं। हमें कुछ नहीं चाहिए, सिवाय आपकी बेटी के। एक गांठ हल्दी के साथ विदा दीजिए, हम उसी में भी अपनी खुशियाँ ढूँढ लेंगे ।"
कुछ क्षणों के लिए परसूराम निर्वाक्-सा बैठा रह गया। उसके मन में न जाने कितनी आशंकाएँ एक साथ उमड़ पड़ीं। वह जानता था कि शादी से पहले सबकी बातें मीठी लगती हैं, परन्तु विवाह के बाद वही लोग बेटी को ताने देंगे—“मायके से कुछ नहीं लाई” कहकर। यह कल्पना मात्र से ही उसका हृदय कसक उठा; वह ऐसी बातें अपनी बेटी के हिस्से में नहीं आने देना चाहता था।
जगन ने परसूराम की चुप्पी को पढ़ लिया। उसने धीरे से कहा,
“देखिए परसूराम जी, हम आपकी बेटी को लेने आए हैं, उसे परखने नहीं। हमें अपने से अलग मत मानिए। दहेज तो बेटी के ही सहारे के लिए दिया जाता है, ताकि नए घर में उसके कदम ठोस हों, और वह अपना हक़ बिना झिझक के ले सके— दहेज उसकी सुविधा है । लेकिन कुछ नासमझ लोग मान बैठते हैं कि दहेज माँ-बाप या घर के सभी लोगों का है ।जो गलत है ।”
जगन के स्वर में एक अपनापन था, जैसे वह परसूराम का संकोच दूर करना चाहता हो। कमरे में वातावरण थोड़ा हल्का हुआ, मगर परसूराम के हृदय में उठी आशंकाएँ अब भी पूरी तरह शांत नहीं हुई थीं।
“रिश्ते जब बनाए जाते हैं, तो मीठा के साथ कड़वाहट भी जीनी पड़ती है। आपकी पीड़ा हमारी भी होगी। कुछ पैसे मैं दे सकता हूँ, जिन्हें धीरे-धीरे चुका देना। इसे मदद न समझना, इसे अपने बीच का कर्ज समझ लेना—जो दूसरों से नहीं, अपनों से लिया गया हो। इस पर कोई ब्याज नहीं लगेगा,” जगन ने कह कर मुस्कुराया।
परसूराम गहरी सोच में डूब गया। क्या करे? रिश्ता सही लगता था, पर दिल में हिचक थी।
“हाँ, ठीक है। लेकिन मैं पूरी बरसात का इंतजार करूँगा। उसके बाद ही शादी होगी,” उसने धीमे स्वर में कहा।
दोनों एक-दूसरे की आँखों में अपनी-अपनी समझ और स्वाभिमान को परख रहे थे। मुस्कान में ही जगन ने अपने हाँ का इशारा कर दिया।
कुछ दिनों बाद बारिश ने पूरे गाँव को भीगाया। हर बूँद जैसे परसूराम के टूटे अरमानों में नई जिंदगी भर रही थी। उसके चेहरे की झाइयाँ, जैसे काले बादल, अब हल्के और सुनहरे रंगों से सज उठीं।
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