जो जीना नहीं चाहता था -कविता who didnt want to live

who didnt want to live

 जो जीना नहीं चाहता था

वो दुनिया के सामने थी
जो जीना चाहता था
मेरे पास था
जिसे मैंने कभी
किसी के सामने कह नहीं पाया
दुनिया अपने हिसाब से
समझ गई
सिर्फ अपने दृष्टिकोण से

कभी कभार कह दिया तो
दुनिया समझ नहीं पाईं
और जो समझा
वो मैं नहीं था

मैं था वहीं पर
जहां दुनिया नहीं थी
वहां मैं अकेला था 
एकदम अकेला !!!!


who didnt want to live


अकेलापन
घिरा नहीं था
चुना था
जब भी गया भीड़ में
अकेला लगा
खुद से ही बातें की
और समझाया खुद को
देखा स्वयं को
दूसरों को
कितने अलग है सभी मुझसे
और मैं उससे
सबकी आवाजें सुनाई दे रही थी
मेरे भीतर की
बाहर की
एक अवसर लाया
मेरा अकेलापन
मुझे साथ लाया
अकेलापन
मेरी पहचान लेकर !!!!

किसी अकेले में बैठा इंसान
कितना निश्चिंत होता है
हालांकि
खुद में व्यस्त होता है
(खुद से बातें करते हुए)
लेकिन जरूरी
किसी का साथ नहीं होता  !!!!

जिस पर जीना नहीं था 
उसने विरोध किया 
चाहे अच्छी बातें हो 
केवल विरोध किया 
मुर्खो जैसा तर्क दिया 
और खुद को साबित किया 
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से 
जैसे महान व्यक्ति हो 
जिसे जीना कभी आया ही नहीं 
भुखमरी, गरीबी के नाम पर 
विचार रखे 
जो जिंदगी भर 
किसी के दया का पात्र था !!!!

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