हरा पेड़ को काटकर इंसान -कविताgreen-tree-cutting-man-poetry

 green-tree-cutting-man-poetry-literature-life-world-environment-day-on.

हरा भरा पेड़ को

काटकर इंसान
घर की चौखट
दरवाजा, खिड़की
टेबल, कुर्सी
बनाते हैं 
तरह - तरह की चीजें
जो धूप गर्मी सहकर
ठंड से अकड़ कर
उसकी हिफाजत करता है
कभी कुछ नहीं कहता है
मगर
वहीं पेड़ की लकड़ी
बरसात की फुहार पा कर
फूल जाता है खुशी से
मानसूनी नमी लेकर
शायद  ! सोचता है
उसके बगल का पेड़ खड़ा होगा
हालांकि वे उस दिन कटा होगा
जिसके बीज ज़मीं पे पड़ा होगा
जो बरसात की एक बूंद से
अंकुरित होगी 
इसी आशा में
बरसात को देखकर खुशी है !!!!

green-tree-cutting-man-poetry-literature-life-world-environment-day-on.


लोग बड़े व्यापक स्तर की बातें करते हैं
जिसके लिए व्यापक स्तर की सोच
और सामुहिक रूप से प्रयास की जरूरत है
जबकि वर्तमान समय में
लोग केवल स्वार्थ पूर्ति हेतु इक्ट्ठे होते हैं
किसी नेक इरादों से नहीं
जिसमें एकरूपता हो
जरूरी नहीं !!!

तथाकथित बुद्धिजीवियों ने
जंगल बचाने की बातें कही हैं
जिसने कभी घर की तुलसी
गांव के बरगद
तालाब के मेड़ पर उगे
पीपल, आम
की चिंता नहीं की
न ही देखे हैं
न रोपित किए हैं
कभी पेड़
अपनी बाड़ी में
मकान बनाएं है
किराए में देने के लिए
घर के जगह ख़ाली में !!!!

पेड़ सूखे नहीं थे 
जड़ को तुमने देखा नहीं 
दीमक चाट रहे थे 

इन्हें भी पढ़ें 👉 कविता अधूरी रह गई 
green-tree-cutting-man-poetry-literature-life-world-environment-day-on.


Reactions

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ