वो कहता रहा - कविता he-saying-I-listening-being-poem

he-saying-I-listening-being-poem

 वो कहता रहा

मैं सुनता रहा
उसकी जुबान
बंदूक की तरह
चलता रहा

शब्द उसके व्यंग्य थे
फिर भी वे संग थे
ज़हरीले बोल उसके
डसता रहा
तन मन को
घायल करता रहा

मीठी बातें मगर व्यंग्य है
उसके विचार कितने तंग है
इसी असमंजस में
मैं डरता रहा
वो आदमी
अपनी मर्ज़ी से कहता रहा

इतनी लापरवाही है
शायद यही समझदारी है
चुप रह के निकल जाओ
या उसके जैसे बन जाओ
खुद बुरे हैं मगर 
मुझसे लड़ता रहा

आखिर कब तक सहा जाय
अब उसको भी देखा जाय
जो अपनी सुविधा में बातें करते हैं
चंद फायदों में गिर जाते हैं
मतलब में उपयोग करता रहा
चुपचाप सहता रहा
वो कहता रहा
मैं सुनता रहा !!!!

he-saying-I-listening-being-poem



उसकी बातों में
सहमति नहीं थी
इसलिए विरोध किया
विरोध किया जोरदार किया
मुझे ग़लत साबित करने के लिए
और मैं उसे ग़लत साबित करने के लिए
विरोध किया
गतिरोध किया रिश्तों में
इस तरह हम अलग थे
जो कभी मिल नहीं पाए
साथ रहकर भी
समझ नहीं पाए
एक दूसरे को !!!!



Reactions

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ