man-habit-nature-is-poetry-literature-life.तथाकथित बुद्धिजीवी, प्रगतिशील, वैज्ञानिक और तर्कशील होने का । दोहरी मानसिकता से खुद को श्रेष्ठ साबित करने का । दिखावा ज्यादा चलन में है । चालाकी को समझदारी मान कर इतराने का ।
मनुष्य का आदतन स्वभाव है
हर अच्छी चीजों को
विकृत कर देता है
अपनी ही सुविधा में
बनाएं हुए हर चीज़ को
भूल जाते हैं कि
जीवन की सरलता के लिए
निर्माण हुआ है
जितने भी पुस्तक-
ग्रंथ की रचना हुई है
मानव जाति के
कल्याण के लिए है
प्राचीन आविष्कार से लेकर
आधुनिक अविष्कार तक
हवाई जहाज से लेकर
मोबाइल तक
यही भावना है
लेकिन मनुष्य
निजी स्वार्थ देखता है
हर उस चीज में
जिसमें सामाजिक हित हो
व्यक्तिगत हितों को
साधने का प्रयास करता है
और एक सभ्य मनुष्य
भूल जाता है कि
अविष्कार गलत है
या फिर आदमी !!!!
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विकृत हुआ आदमी
विकृत तर्क करता है
जितना अपने लिए सोचता है
दूसरों के लिए कहां सोचता है
गिर कर भी पैसा उठा लेता है
गिरा हुआ आदमी
गिरगिट बन जाता है !!!
संतुष्टि
अपने विचारों को
सही साबित करने के लिए
ऐसे विचारों से
मिल जाना
जो उसके विचारों को
सही साबित करें
शामिल हो जाते हैं
या शामिल कर लिए जाते हैं !!!
वर्तमान ज्ञान
ज्यादातर
सोशल मीडिया से आते हैं
छोटे से छोटे
विचारों का समूह
या फिर गिरोह है
जिसमें शामिल हैं
बूरे लोगों की संख्या
ज्यादा !!!!
ज्ञान
देखने सुनने से आते हैं
सोशल मीडिया अच्छी जगह है
इसलिए सब
फ़ोन पे व्यस्त हैं !!!!
अकेले ही चला था
साथ आने के लिए
किसे कहा था
तुम खुद आए मेरे पीछे
मैं अकेले ही भला था !!!!
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