The-nature-of-pretense-has-changed-Hindi-poetry-
ढोंग का स्वरूप बदल गया हैं
वक्त के साथ - साथ
जिसे पहले धर्म गुरुओं में
जिसे पहले किसी नेताओं में
जिसे किसी चोर उचक्के में
बहुतायत देखा जाता था
या अक्सर अब भी देखा जाता है
जिन गुणों को लोग अक्सर
आलोचना करते हैं
वह अब बुद्धिजीवियों से लेकर
जनसामान्य में आसानी से देखा जाता है
अब अच्छी बातों का रट्टा है
बस लोगों को बहलाने के लिए
अभिव्यक्ति की आजादी है
सहनशील लोगों को चिढ़ाने के लिए
नफरतों का एक समूह
सोशल मीडिया के नाम पर है
ढोंग रचा जाता है
आजकल वहीं समझदार कहा जाता है !!!!
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हमने तो बरसों से
नदी, पहाड़,
पेड़ पौधों की
पूजा की है
अपने परिवार की तरह
रीति रिवाजों में
शामिल किया है
ताकि शामिल रहे
हमारे साथ
उनका विकास
और उपयोगी बना रहे
हमारे जीवन में
लेकिन तुमने व्यक्तिवादी हो कर
केवल उपयोग ही किया
दोहन की तरह
अति की सीमा के उस पार
जहां सर्वनाश करने की
तैयारी पूरी कर ली है
आज नहीं तो कल
तुने दोहन को महत्व दिया
हमने अपने साथ जीने का !!!!
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अभी धरती जल रही है
नौतपा की आंच पर
और तुम बैठ गए हो
एसी, कूलरों के पास
तुम्हें लगता है
ये इलाज़ है
गर्मी का
नहीं अपने घर से निकलोगे
तब तुम्हें पता चलेगा
एसी कूलरों को
हम साथ नहीं ले जा सकते हैं
हर जगह
जबकि पेड़ों को
रोपित कर
हर जगह लगाया जा सकता है !!!!
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