buddhijivi aur usaka chintan-बुद्धिजीवी और उसका चिंतन

बुद्धि होना बेहतर की निशानी है ।buddhijiv aur usaka chintan जिसकी बुद्धि की दृष्टि तीक्ष्ण होती है । जिसका निर्णय सदा लाभदायक होते हैं । जबकि बुद्धिहीन आदमी हर पग पर उलझता है । जिसे न कोई पुर्वानुमान होता है और न ही किसी कार्य का बेहतर होने की उम्मीद । संशय और भय की उत्पत्ति तभी होता है । जब अज्ञानता हो । जो समझ पाते हैं । हर क्रिया, प्रकृति और कारणों को उसके लिए आसानी होती है । लेकिन दुर्भाग्यवश आजकल के लोग अपनी बुद्धि में चालाकी को ज्यादा स्थान देते हैं । जिसके वजह से हर चीज़ में लाभ/हानि के हिसाब से व्यवहार स्थापित करते हैं और हर चीजों को अपनी दूषित बुद्धि से उसके स्वरूप की परिभाषाएं भी मनचाही दी है । जिससे भ्रमित है  सभी  । किसी भी विचार पर आम सहमति नहीं है । ज्यादातर मामलों में ऐसे तथाकथित बुद्धिजीवी दोगले ही बने रहने को अपने विचार की दृढ़ता मानते हैं । 

buddhijivi aur usaka chintan


बहुत कुछ जान जाते हैं
( हालांकि हमारे पास बुद्धि नहीं है
तुम जैसे)
इसलिए चुप हो जाते हैं
दिखाई देने लगते हैं 
हमें
तुम्हारी बुद्धि का पंगूपन
जो बुद्धि से उपजा ज्ञान
एकतरफा प्रसारित होने लगते हैं
तुम्हारा  ,


लाज़मी है
तुमने बुद्धि से ही चुना है
ऐसे इरादे
जानबूझकर
क्योंकि तुम्हारे पास बुद्धि है
और दोगलापन
जिसे हम जानते हैं
और चुप हैं

चिंतन और बुद्धिजीवी 


तथाकथित बुद्धिजीवी हो जाना
वाचाल हो जाना है
जहां चुप रहना है
वहां भी बोल जाना है
क्योंकि खुद को साबित करना
तथाकथित बुद्धिजीवी हो जाने का
ढोंग है 
तुम्हारा !!!!




बुद्धि की अधिकता
उसके निकट की मुर्खता है
यदि उस पर लगाम न रखा जाय तो
दूसरों के लिए घातक है
उपद्रवी जैसे !!!!


तुम जिसे तर्कों से देखते हो

ऐसा लगता है
मज़ाक करते हो
मेरी भावनाएं से
और प्रेरित करते हो
फायदे के लिए जीना
सौदेबाजी से उपजी
बुद्धि है तुम्हारी !!!!

 
वैराग्य आ ही जाता है
भावनाओं से
जिसे तर्कों पर
ठहरना आ गया
फायदों पर जीना आ गया
निकल ही जाते हैं
हर जगह देखने की प्रवृत्ति से
उदासीनता आ जाती है
जिसे लोग बुद्धिजीवी
मानते हैं लोग
असल में फ़ायदे लाभ का ज्ञान है !!


हैरान हूँ 
उस सियासी साहित्यकारों  को देखकर 
जो सभ्य लोगों के बीच आ गए हैं 
 जिसकी सोच कभी 
व्यापक नहीं हो सकता है 
सदा सेलेक्टिव होकर 
अपना एजेंडा चलते हैं !!!



बुद्धि में स्थापित लोग 
रिश्ते चुन चुन कर बनाते हैं 
मतलब निकल जाए 
ऐसे रिश्ते बनाते हैं !! 
वो जब भी देखेगा 
कमियां ही देखेगा 
वो नफरतों में जीते हैं 
इस तरह !!!!


बुद्धिजीवियों के लिए

भावनाएं

स्थगित है

अनंत काल तक

इससे मिलता कुछ नहीं है !!!


तुम ही हो न

ज्ञान देने वाले

बिन मांगे राय देने वाले

बरसाती मेंढक

तेरे चिल्लाने से

बरसात नहीं होती !!


तुमने चतुराई से जोड़ दिया

उन तथ्यों को

सत्य को

जिसमें नंगापन था

ईश्वर से

न्याय, विश्वास करने वाले लोगों की आस्था से

मांगों न्याय इस धरा पर

रहकर

जिसे पुजते हो

एक चुनौती के रूप में

जैसे तुमने कहा था

ईश्वर नहीं होता

तुम्हारी किसी ने बात नहीं मानी

जिसका बदला

पीड़ित होने पर

ले रहे हो

आलोचना करके

तथाकथित बुद्धिजीवी

तुम !!!

तुम्हारा प्रेम कविता 


buddhijivi aur usaka chintan





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