वो मुझे देखता है कि मैं उसे पहले प्यार करूं- गजल

He-sees-me-that-I-love-him-first-ghazal

 वो मुझे देखता है कि मैं पहले प्यार करूं

ऐसे में भला मैं कैसे उस पर एतबार करूं

इश्क कोई शर्त नहीं है जिसमें टिका जाय
ऐसे शर्ते में भला मैं कैसे उससे प्यार करूं

फर्क नहीं है नदी में नाला गिरे या नाला में नदी
हर शर्तों को तोड़ते हुए सागर की ओर धार करूं

आना है तो आ जाओ जिंदगी हम तेरे इंतज़ार में है
बेसब्री के आलम में क्यों सोमवार या इतवार करूं !!!!

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सहज नहीं था
प्रेम
जिसे बनाया गया हो
समाज से मान्यता लेकर
जैसे 
शादी दो शरीरों का मिलन था
और कोशिश भी
भूख लगने की शुरुवाती दौर में है
भूख की पूर्ति हो जाती है
जबकि पाने की कोशिश में
ज्यादा तड़प होती है 

शादी एक प्रयास है
जैसे कबूतरों की जोड़ी बनाकर
उसके घोंसले में कैद रखा जाता है
एक दो दिन
फिर जोड़ी बनकर तैयार हो जाएगी
एक दूसरे की पूर्ति के लिए


साथ रहने की स्वाभाविक प्रवृत्ति
लगाव और भाव पैदा कर जाता है
भूख की वजह से
सहेजता है
अन्य के कण
खराब हो जाने पर निकाल दिया जाता है
जैसे शादी में तलाक  शब्द
निकल आता है
अलग होने के लिए 
मान्यता समाज का ध्यान रखना होता है
शादी में
जबकि प्रेम
मरने तक
जीवित रहता है 
स्वाभाविक बना होता है 
जिसे समाज मान्यता नहीं देता है !!!!

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