Truth-cannot-be-established तमाम उलझनों के बीच स्वयं के अस्तित्व की पहचान ,स्थिर कर पाना । जागृत अवस्था से मृत्यु का वरण कर पाना । शरीर, मन और रिश्तों के साथ न आने के बावजूद न्याय और सत्य को साक्षी रूप में साथ रखना , जीवन और मृत्यु में एकरुपता के भाव का होना, अंतिम सत्य है । भले ही दुनिया की दृष्टि से कुछ भी हो ।
Truth-cannot-be-established
सत्य पराजित नहीं होता है । लेकिन दबाया जा सकता है । मुंह फेर सकते हैं । बहुत दिनों तक । कुछ सत्य किसी - किसी के मरने के बाद ज्ञात होता है और उस दिन सत्य की कोई कीमत नहीं होती है ।
आधुनिक चिंतनशील, तर्कशील बुद्धिजीवियों ने सुविधा के अनुसार सत्य स्थापित किए हैं । जिसे लोकतांत्रिक भीड़ से रक्षा करते हैं ।
आदमी ज्यादातर जो देखते, सुनते हैं। उन्हीं के बारे में धारणाएं स्थापित करते हैं । जो धारणाएं, खासकर मुर्खो की अपरिवर्तनीय होती है । जो अनुमान से बनी होती है । अनुभव से नहीं । वो बदलती नहीं हैं ।
उपरोक्त बातें जो हैं झूठ के सहारे खड़े होते हैं । मगर जिसे महसूस करते हैं वे लोग जिसे झूठ से शांति, निश्चितता , पूर्णता , संतोष की प्राप्ति नहीं होती है । वे पुनः स्थापित करते हैं । सत्य को ।
मगर आजतक सत्य को महसूस तो सभी कर लेते हैं । मगर साथ नहीं देते हैं । अपनी सुविधा में दुविधा देख लेते हैं ।
सत्य और झूठ की आपसी लड़ाई है । स्थापित दोनों हो जाते हैं । समय-समय पर । खासकर आज के ज़माने में । झूठ ज्यादा सुखी है और स्थापित भी ।
स्थापित नहीं हो पाते हैं
कभी कोई सत्य
क्योंकि उसे तोड़ दिया जाता है
अपनी सुविधा में
एक साहित्यकार
अपनी कलम से
विद्वत्ता प्रदर्शन करके
कुछ समूहों के समर्थन से
एक सच को
ग़लत साबित करने में
लगे रहते हैं
दिन रात
क्योंकि उसने कभी
सच की लड़ाई नहीं लड़ी है
बस किसी एजेंडे में फंसे हैं !!!!!
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