Poetry-in-that-seed-in-hindi
उस बीज में
अजीब बिखराव है
हवाओं के संग-संग
जो उड़ जाते हैं
यही कहीं
जहां ले जाए
हवाएं अपने संग
जिस मिट्टी से मिले
जहां कहीं भी मिले
अंकुरित होने को आतुर
पानी के एक बूंद से
समताप से
द्रवित हो जाती है
बीज
खुद ही
भीतर- भीतर
नई पत्तीयां उग आती है
नवजीवन के संग
और नन्हे पौधे
आसमान ताकता है
अपनी ऊंचाई नापता है
नन्हे पौधे !!!!
Poetry-in-that-seed-in-hindi
उस बीज को
अंकुरित होना ही पड़ा
जो जमीन से मिले थे
बंजर होने पर
बादल की एक बूंद
पड़ते ही
मिट्टी से सौंधी खुशबू बिखेरने लगी
संग - संग बीच
फुल कर
अंकुरित हो गया !!!
हर बीज अलग-अलग होंगे
मुझे जैसा अहसास हुआ
खाद, मिट्टी
नमी, कमी
वैसे ही महसूस होगा
नए बीज को
जरूरी नहीं
वो ग्रहण करके
अपने हिसाब से !!!!
जो अपनी जमीं का देखभाल
दूसरों के भरोसे करवाते हैं
अक्सर बंजर हो जाते हैं
और याद रखना
बंजर जमीं स्थायी होने पर
खेती करने से पहले
सब कतराते हैं !!!!
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