मैंने कई बार देखा है personal-life

कुछ विचार personal-life. इस तरह से आया मानो जीवन के लिए बहुत जरूरी है । लोगों ने देखा और ग्रहण करना शुरू कर दिया । क्योंकि इतने दिनों तक वे वहीं रिवाजों का पालन करते आ रहे थे । जिसमें उसे स्वतंत्रता कम बंधन ज्यादा लग रहा था । लोगों ने तथाकथित बुद्धिजीवियों की बातों को हु-ब-हू अपनाने लगा ।जिसका असर ऐसा हुआ कि सबकुछ को छोड़ने के लिए आतुर हो गए । जरूरी चीजें जो जीवन के आवश्यक था । उसे भी दकियानूसी कहने लगे । ज्यादातर यह बदलाव हिन्दू वर्गों में हुआ क्योंकि उसका सिद्धांत ही है । जीवन को सरल बनाना । बाकी गैर हिन्दू जस के तस रहा । उसकी और कभी ध्यान नहीं दिया गया है । जो आज भी अपने रिवाजों को कट्टरता से पालन करते हैं । जो समय के साथ यह सिद्ध किया कि यह साजिश है । तथाकथित बुद्धिजीवियों के द्वारा । पढ़िए इस पर कविता 👇 

personal-life.

मैंने कई बार देखा है

कई लोगों को
घूंघट के विरोध में
यह कहकर
यह पिछड़ेपन की निशानी है
कई उसके शोध में
इससे मुक्ति मिलनी चाहिए
पुरूष जंजीर को तोड़ कर
आज़ाद होना चाहिए
लेकिन वही आज कह रहे हैं
बुर्के पर
ये व्यक्तिगत स्वतंत्रता है
किसी की निजता का
जिसमें बंधे रहने का हक़ है
किसी को
बोलने का हक़ नहीं है
कोई क्या पहने ?
कोई क्या खाएं ?
कल तलक जिसकी क़लम मुखर थी
रूढ़ियों पर
वहीं उसकी क़लम की स्याही
सूख गई है
कोरे कागज पर
जो दिखाई नहीं देती है
कहीं पर
जो सिद्ध करने की
कोशिश कर रहे हैं
व्यक्तिगत जीवन बड़ा है
किसी संस्थान से
प्रश्न है
ये आज तक
कैसे विद्वान बने बैठे हैं
हमारे बीच में !!!

पर्सनालिटी और प्रगतिशील हो जाना 

कई बार देखा है
पांव के माहुर का विरोध करते हुए
यह स्त्री का श्रृंगार
पुरूष की गुलामी है
इसको तोड़नी चाहिए
लेकिन कई बार देखा है
अर्धनग्न रील बनाते हुए लड़कियां
जिसे देखा उसकी आंखों में
चमक उठती है
कितनी प्रगतिशील हो गई है लड़कियां !!!

व्यक्तिवादी होना
मतलब अपने लिए जीना
न पसीजे दिल
बुद्धिजीवी हो जाना
इसलिए पढ़ें लिखे
बुद्धिजीवियों ने 
इजाद किया है
रिश्वत का
मतलब निकालने के लिए
चालाकियों का
तुम्हें पता है
सीधा सादा होना खतरनाक है
इन बुद्धिजीवियों के सामने !!!

उन चीजों को मिलने नहीं देते
जिससे समरसता बढ़ती है
मोहब्बत बढ़ती है
तथाकथित बुद्धिजीवियों ने
सोशल मीडिया पर ग्रुप बना लिए हैं
ताकि नफ़रत जिंदा रखे
दोष दूसरों को दें
अपने गिरेबान न देख सके
कोई गला काटने को
सही बता रहा है
वहीं भजन को बुरा बता रहा 
और आदमी को आदमी से अलग रखें 
आगे क्या होगा देखें 
स्त्री और पुरुष के लिए
लिखी जाने वाली कविताएं
उतनी वाहवाही नहीं बटोरती
जितनी केवल स्त्री के लिए
लिखी जाती है
कवि भी अलग करना चाहता है
या फिर बहलाते हैं !!!

इन्हें भी पढ़ें 👉 मनमाफिक परिभाषा 
personal-life.




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