बजट क्या है Budget-what-is-article

 सरकार का बजट कुछ भी हो । अपना बजट बनाए । जीवन व्वस्थित होगा ।Budget-what-is-article

अक्सर देखा है । जो सरकार से अधिक उम्मीद की टकटकी लगाए देखते हैं । मुफ्तखोरी करना सीख जाते हैं। सरकार के योजनाओं का लाभ लेने के लिए सजग रहते हैं । अपना सारा काम छोड़कर । सियासत करने और सियासतदानों की चापलूसी में वक्त गुजारते हैं ।

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इसके बाद भी कमी रहती है । चाहे फायदे कितने भी मिले । 

इसके बावजूद रात दिन सरकार की आलोचना करना ,, जिसे कोई कभी खुश नहीं कर सकते हैं और नहीं कभी खुश हो सकते हैं । जितने मुफ्तखोर है ।अकर्मण्य है । सरकार पर बोझ है । ध्यान रहे बजट देश के हितों को देखकर बनाया जाता है न कि व्यक्ति को । अगर जरा भी देशभक्ति है । तो देश को देना सीखीए ,, लेना नहीं । किसी तरह बोझ न बने ।देश पर,, सरकार पर ।

यदि अपना बजट सरकार के बजट पर निर्भर करते हैं तो ऐसे लोगों का जीवन निःसंदेह देश हित के लिए घातक है । उसके स्वयं के लिए भी । 

मुफ्तखोरी के एक रूप है- रिश्वत लेना और देना ।

जो व्यवस्था पर दिखाई देती है । हालांकि व्यवस्था को सरकार संचालित करती है । लेकिन बेहतर क्रियान्वयन की जिम्मेदारी पढे़ लिखे लोगों की है । जो व्यवस्था में बैंठे हैं । एक पद क्या पाए मौके की तलाश में रहते हैं कि कही से ऊपरी कमाई हो जाए । समझदार इतने हैं कि ऐसे लोग सरकार के लक्ष्य और नियम को बडी़ सफाई से पालन करते हैं । ध्यान रखा जाता है कि उसके हितों की रक्षा हो सके ।पद से मिलने वाले पैसे और ऊपरी कमाई भी बना रहे । जहाँ के व्यवस्था में ऐसे समझदार व्यक्ति हो जो अपना बजट बढा़ने के लिए किसी गरीब का बजट बिगाड़ते हैं । तो ऐसी व्यव्स्था के बारे में कोई क्या कह सकता है।

जो शार्ट कट में विश्वास करते हैं

ऐसा नहीं है कि रिश्वत लेने वाले ही मुफ्तखोरी की आदत से लाचार है । जो शार्ट कट में जाने वाले लोग हैं वे भी जल्दी में रहते हैं । रिश्वत लेने के लिए प्रेरित करते हैं । जो लाइन में लगने से कतराते हैं । अपने पैसों के बल पर अपना काम निकाल लेते हैं । जिसे अक्सर व्यवहार के रूप में करते हैं । जिसका नाम चाय-पानी आदि है । जिसकी आदत लगने से रिश्वतखोर हर किसी से मांगते हैं । मजबूर करते हैं । ताकि उसकी नीयत सफल हो । कुछ लोग अपने मूल दायित्वों को छोड़कर पार्ट टाइम जॉब करते हैं । वे जानते हैं कि सरकारी नौकरी कहीं नहीं जाएगी । नौकरी लगना कठिन है तो नौकरी से निकालना उससे भी कठिन है । इसलिए बेपरवाह होकर अपना अन्य कामों को करते हैं । ड्यूटी केवल कागजों पर । देखते ही देखते अपना पार्ट टाइम जॉब पुरी तरह से अपना लेते हैं । ऐसी बहुत से सरकारी संस्थान है । जहां पर इस प्रकार की मानसिकता से ग्रसित लोगों को देखा जा सकता है । 

व्यवस्था ही इतनी जटिल हो गई है

 कि अब यह समाज में एक तरह से सबको स्वीकार्य हो चुका है । लोग अपने व्यवहार या फिर दिनचर्या में देखते ही रहते हैं और हिस्सा बनते ही रहते हैं । व्यवहार के रूप में अब छोड़ा नहीं जा सकता है, शायद !!!

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                                        गुस्सा 

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