खुद को निखारते रहिए poetry-life-in-hindi

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 खुद को निखारते रहिए

धीरे-धीरे ही सही 

मगर चलते रहिए

बड़ा चंचल है मन

इसको पकड़े रहिए

उपयोग न हो तो

जंग लग जाती है कुल्हाड़ी पे

तन भी ऐसा ही है बन्धु

उपयोग करते रहिए

निर्थक है वहॉं बोलना

जहॉं सुने ना कोई

चुप्पी ही अच्छी है

खुद को समझाते रहिए

जब निकल पड़े हो डगर पे

परवाह न हो धूप छॉंव की

बस लक्ष्य हो मंज़िल का

चलते-चलते ही गुनगुनाते रहिए !!!!

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हमें अभी बोलना नहीं आया है 

नहीं तो तर्क करना 

शिक्षित ज़रूर हुए  लेकिन 

सुविधानुसार 

न्यायसंगत नहीं 

उन जगहों पर चुप्पी साध ली है 

जहां हमें बोलना चाहिए 

इसलिए आतंकवादी 

हमलावर है!!!!


प्रेम का अर्थ 

उन्होंने नहीं समझा 

अपराधी की तरह 

आरोप लगाया 

और खुद बचकर निकल गए 

हमें लगा 

वो हमारी पैरवी करेगा 

लेकिन सज़ा देने में शामिल रहा !!!!


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