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धर्म परिवर्तन
किसी ईश्वर की तलाश में
नहीं की जाती है
जिसके बदलते ही
ईश्वर की प्राप्ति हो जाती है
ऐसा नहीं है कि
किसी अन्य धर्म में
इतनी सहजता है
ईश्वरीय ज्ञान
प्राप्त होने की
जो शामिल होते ही
महसूस करा दें
धर्म बदले जाते हैं
किसी नाराजगी में
जो रूचते नहीं है
कुछ अपने धर्म की बातें
अपनाने में
कुछ असुविधाएं होती है
उसकी सुविधा में
बाधा उत्पन्न करते हैं
उसके मार्ग में
जिससे छूटना चाहता है
ताकि सहुलियत हो
उसको चलने में
या फिर
शामिल नहीं हो पाते
अपने धर्म के विषय में
उसकी गहराई में
जो सदा दूर ही रहते हैं
अचानक किसी चमत्कार को
नमस्कार कर बैठते हैं
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धर्म बदले जाते हैं
कुछ लालच में
सुविधा पाने में
जिसे ईश्वर से
कोई मतलब नहीं है
कहॉं रहता है ?
कैसा स्वरूप है?
किंचित भी
कोशिश नहीं होती है
बस मान लेते हैं
किसी के कल्पनाओं को
यथार्थ !
किसी ब्रेनवाश की तरह
परिवर्तन हो जाता है मन
उसकी कल्पनाओं के
जड़ता में
विचार शून्य कर लेते हैं
किसी भेड़ की तरह
पीछे पीछे चलने की आदि
जिसे महसूस नहीं होता कभी
ईश्वर का
निस्संदेह कुछ लोगों को
महसूस होता है
किसी के बातों में
जिसके कारण
बदले जाते हैं
धर्म
जिनकी संख्या नगण्य है
जबकि ईश्वर सर्वव्यापी है
उसके और गैरों के हृदय में
अखण्ड ब्रह्मांड के कण-कण में
व्याप्त है
जिसे स्वयं के
भीतर पाया जाता है
अंतस की गहराई में
जिसको जानते ही
भेद खत्म हो जाता है
तेरे मेरे धर्म का !!!!
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