the city-on-poetry
शहर जाने वाले
ठीक है
तुम चले गए
शहर
तुम्हारी जरूरत थी
जिसकी पूर्ति की तलाश में
मगर याद रखना
वो बुढ़े बरगद के छांव
वो बारिश के पानी में
चलाते नाव
वो गिल्ली डंडे से
लगाते दांव
वो विष- अमृत का खेल
हॅंसते गाते बच्चों का मेल
तुम्हें नहीं मिलेंगे
ऊंची-ऊंची इमारतों के बीच में
सिवाय सीमेंट-ईट-गारों के
भीड़ मिलेगी मगर
तन्हाई के
और जब तुम थक जाओगे
पैसों का हिसाब लगाते-लगाते
हार जाओगे
दौड़ते दौड़ते
उस वक्त तुम
याद कर लेना
हमारे बीते हुए बचपन को
कभी खड़े हो कर
देख लेना आईने को
तेरे चेहरे पे
सुकून की लकीरें
उभर आएगी
और तुम्हारी थकान
मिट जाएगी !!!
शहर जाने वाले
ऊंची - ऊंची मीनारें देखकर
शहर की चाहते देखकर
भूल न जाना
गांव के बरगद की छांव
जिसे लगाना भूल जाते हैं
शहर वाले
भूल न जाना
चिड़ियों का कलरव
नदियों की कल-कल
वो मधूर संगीत
जिसकी चाहतों में
तुम भूल जाते थे
दुनिया को
इसलिए तुम जब भी आना
इन्हीं यादों के भरोसे आना
शहरों में पैसा है लेकिन सुकून नहीं
तुम याद रखना !!! !
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