ghazal-hindi-in-social-change-on
भटकने का समय नहीं रहा
मचलने का समय नहीं रहा
लोग बदल जाते हैं सुविधा में
अब सच का जमाना नहीं रहा
कहॉं ठहरती है दिमाग में मस्ती
कोई पागल-दीवाना नहीं रहा
उम्मीद लगाए जो यहॉं बैठे हैं
पथराई आंखों में पानी नहीं रहा
ये गूगल भी क्या चीज़ है यारों
घर में पोथी पत्रा अब नहीं रहा
शब्द कुछ और इरादे कुछ और
जुबान में लगाम अब नहीं रहा
उसके वादे का क्या भरोसा
खुद ही खुद की बातों पे नहीं रहा !!!
ghazal-hindi-in-social-change-on
भटकने का समय नहीं
लोग चालक है बहुत
डरने का समय नहीं
इरादा ढूंढो अच्छी बातों पे
बेवकूफी का समय नहीं
वो समझा रहे हैं मुझे बहुत
कोई सियासत तो नहीं
कभी देश को अपना कहा नहीं
हिन्दुस्तान उसका तो नहीं
गुजर गए वो दिन अच्छे
ये समय सत युग तो नहीं !!!
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