मेरी चाहत में क्या कमी थी Chahat-par-ghazal-hindi

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 मेरी चाहत में क्या कमी थी

यही आसमान यही ज़मीं थी

जहॉं हम मिले थे सुकून के साथ

मैं आज भी वही हूॅं जहॉं तू ही नहीं थी

मैंने कई बार ज़ाहिर की अपनी मोहब्बत

ग़ौर नहीं किया तुने , मोहब्बत नहीं थी

दीवानगी भी अजीब है किसी के प्यार में

दिल वहॉं अटका जहॉं मेरी चाहत नहीं थी !!!

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मेरी चाहत में

क्या कमी रह गई

मैं रोया बहुत

मगर मेरी आंखों में

नमी रह गई

मैं चाहता तो तुम्हें छू लेता

मगर तुम बुर्के में थी

हवा बना लेकिन

गुज़र गया

स्पर्श न कर सकी

मेरी चाहत तड़प कर रह गई

साथ छुटा तो पूछा

मेरी मोहब्बत में क्या कमी रह गई !!!!

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