poem on negative thinking.
नकारात्मक मेरा दिखाकर
अपनी विद्वत्ता झलकाकर
सिद्ध क्या करना चाहते हो
रोज़ रोज़ आलोचना करते हो
बहुत सरल है नफ़रत में जीना
बहुत कठिन है प्यार में जीना
तू पाक साफ़ है तो नफ़रत कैसे
अपनी गलतियों से मुंह छुपाते कैसे
दोहरे मापदंड में जीने वाले
दुनिया को ज़हर देने वाले
कभी स्थापित करके दिखाओ
जीवन सिद्धांत अपना कर दिखाओ
चंद सुविधाओं में जीने वाले
तुम्हें शर्म कहां अब आने वाले
बहुत सरल है मुझपे सवाल उठाना
बहुत कठिन है खुद पे सवाल उठाना
अपनी प्रसिद्धि के लिए
कुछ भी कर जाओगे
चंद पैसों और सुविधाओं के लिए
इतने गिर जाओगे
तो तुम्हारे अक्लमंदी को धिक्कार है
दुनिया भाड़ में जाए
क्या खुद के लिए जीना ही अधिकार है ?????
poem on negative thinking
उसने छवि चमकाई
इस तरह
बाक़ी सब ग़लत
वो खुद अवतार है
जिस तरह
अभी उसने बोलना सीखा
बोलना क्या सीखा
आलोचना सीखा
लोगों को लगा इसमें राजनीति है
समझदार लोग ध्यान नहीं दिया
लेकिन वो करते रहे
आलोचना
अपनी नफरतों से
जिसने बचकर निकला
वो अकेले हैं
मगर नफरती लोगों की भीड़ लग गई थी !!!!!
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