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जिसकी हैसियत रावण के कुछ काज नहीं
उसे क्यों रावण कहलाने में कुछ लाज नहीं
वक्त बदलें है लेकिन मुर्खता नहीं
नाक कट गई है मगर उसे कभी लाज नहीं
मिलते हैं बतियाते हैं मगर वो दूर लगता है
छुपा के इरादे मिलते हैं जैसे कोई राज नहीं
हमने भी सीखें हैं दुनिया की चाल-चलन
वो आलतु फालतु है मेरे कोई सरताज नहीं
ठीक उसी तरह बातें करते हैं जैसे अच्छे लोग
गिरगिट है मगर कोई लाज नहीं
हम दुनिया से बुरे हैं लेकिन खुद से अच्छे
हमारे भीतर कोई राज़ नही !!!
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रावण को आदर्श मानने वाले
तथाकथित बुद्धिजीवी कहलाने वाले
विचार के नाम पर नग्नता
सभ्य समाज को बहलाने वाले
गर्व है उसे मुर्खतापूर्ण सवाल उठाने पर
अभिव्यक्ति के नाम दंगा फैलाने वाले !!!!
-राजकपूर राजपूत''राज''
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