ghazal on complaint hindi
मेरे होंठों पे शिकायत थी
शायद ! उसी से मोहब्बत थी
उसे मेरा नाम लेना गवारा लगा
उसके हर लफ़्ज़ों में गैरों की बात थी
जहां भी ज़िक्र हुआ गौर से सुना
मेरा ज़िक्र ना करना उसकी शराफ़त थी
मेरी दिल्लगी अजीब थी यारों
इश्क़ करता रहा जिसे मोहब्बत नहीं थी !!
ghazal on complaint hindi
पता था मोहब्बत नहीं
दिल में ऐसी कोई बात नहीं
सोचा व्यवहार ही निभा दूं
जिसके सामने मेरी इज्जत नहीं
वो अहसानफरामोश है
कर्ज़ चुकाने की आदत नहीं
मैं सोचा कभी समझेंगे
जिसका ख्याल रखने की आदत नहीं
बंजर जमी भी हरा हो जाता
लेकिन कोई बरसात नहीं
---राजकपूर राजपूत''राज''
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