ghazal on morality
उसने मेरी आलोचना की
मैंने खुद के भीतर देखा
उसके मेरा मज़ाक उड़ाया
करके मैंने सुधार देखा
हर गलती हर मज़ाक का
मैंने जवाब देकर देखा
फिर भी आलोचना के आदि है
जिसने खुद के भीतर नहीं देखा
नफरती है उसकी आलोचना !!!!
ghazal on morality
आलोचना लगभग-लगभग
सुधारात्मक होने का भ्रम है
जिसे सियासी पंथ, लोग
अपने विरोधियों के लिए करते हैं
जबकि उसी क्रम की बुराई
तारीफ करते हैं
यदि उनकी बिरादरी का हो !!!!
उसकी आलोचना
आरोप थोपना है
अपने विरोधियों को
रोकना है
तुम उसे कबीर मत समझो !!!!
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