धूप उतरती है पेड़ों से
धीरे-धीरे
लड़ जाती है अंधियारों से
धीरे-धीरे
सूरज की किरणों से
शरमा के सरक गई
ओस की बूंदें
हरी-हरी दूबों से
न जाने क्या कह गईं
सूरज की किरणें
और मिल गईं ओस
अपनी ज़मीं से
धूप उतरती है पेड़ों से
धीरे-धीरे
लड़ जाती है अंधियारों से
धीरे-धीरे
सूरज की किरणों से
शरमा के सरक गई
ओस की बूंदें
हरी-हरी दूबों से
न जाने क्या कह गईं
सूरज की किरणें
और मिल गईं ओस
अपनी ज़मीं से
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