poetry on rational people आजकल लोग खुद को प्रोगेसिव विचार धारा के मानते हैं । सीखते हैं अच्छी बातें लेकिन उसका भी मतलब निकालने के लिए उपयोग करते हैं । मतलब पे इतने गिर गए हैं । अगर सम्हला हुआ कहां जाय तो भी गिर गए हैं । ऐसा नहीं कि अच्छी बातों की आजकल क़ीमत नहीं है । है मगर लोगों ने अच्छी बातों का भी मतलब इतने निकालें हैं । जिसकी सीमा नहीं है । जिसके कारण किसी बातों पर विश्वास नहीं होते हैं । लोग सचेत रहते हैं । हर किसी पर । पढ़िए ऐसे लोगों के व्यवहार पर कविता 👇👇
poetry on rational people
अच्छी बात नहीं हर बात पे तर्क करना
सुविधा के हिसाब से इंसानों में फर्क करना
इतने ही ईमान है तेरे सीने में तो सच कहना
एक ही बात पे गैरों पे तंज अपनो से नर्म करना
अपनी अहमियत वहीं पर खो जाते हो
झूठ के लिए तेरी सियासत करना
लोग समझ रहे हैं तेरे शब्दों का अर्थ
बड़े भोलेपन से झूठ को सच करना !!!
लोग समूहों में बंट गए हैं लालच के खातिर
एक आदमी का न्याय होगा पैसों के खातिर
सामने तड़पती रह गई है जिंदगी
दया, करूणा एक कोने में है आजकल समझदारी के खातिर
लोग बच-बच कर नहीं निकलते हैं चालाकी है उनकी
लोग खतरा भी मोल लेते हैं पैसों के खातिर
उससे न्याय की उम्मीद क्यों करते हो
जिसने समझें नहीं दर्द किसी का पैसों के खातिर
उसे नेता बनने का अभिमान हो रहा है
अपने आकाओं की गुलामी के खातिर
चमचागिरी करके उसने शोहरत पाई है
मगर इज्जत गवाई मतलब के खातिर
कहां मिलते हैं आजकल "राज " अच्छे लोग
ईमान गिरा देते हैं चंद पैसों के खातिर !!!
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