poem of love
शायद !
उसने कर्ता का नाम न लेकर
क्रिया में
सर्वनाम लगा दिया
जो स्पष्ट नहीं था
किसी क्रिया का होने के लिए
कर्ता का
बचने के तरीके में
शामिल है
ऐसी चालाकी !!!
शायद मैं
उसे प्यार समझता रहा
जिसे वो मतलब के लिए
मधुर व्यवहार में
पारंगत थे
जैसे व्यापार के समय
रिश्ते बनाते हैं
लेन देन के बाद
सेठ की तरफ से
चाय-पानी का पुछना !!!!
poem of love
शायद मैं
ढूंढता रहा हूॅं
किसी के ऑंखों में
प्यार
किसी के दिल में
दुलार
कोई संभाले मुझे
भर के बाहों में
अपना स्नेह
अपना नेह
अपनी ऑंखों से
बरसाए अपना प्यार
इसी उम्मीद में
कहां ठहरता हूॅं
कहीं मिल जाएगी
इसलिए ढूंढता फिर रहा हूॅं !!!
बादल
बेमौसम बरस रहा है
परेशान बहुत है
प्रेम के लिए
तरस रहा है !!!!
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