नजरअंदाज करता है मुझे वो Shayari on System

Shayari on System 

नजरअंदाज करता है मुझे वो

इसलिए ग़ैर लगता है मुझे वो

बातें हुई मगर इधर उधर की

अपना नहीं लगता है मुझे वो

Shayari on System

उसकी अभिव्यक्ति की सीमा नहीं

फ़ालतू का ज्ञानचंद लगता है मुझे वो

शब्दों की चतुराई है उसमें

पक्का झूठा लगता है मुझे वो

सिस्टम की दुहाई तब तक

सिस्टम से बचा हुआ लगता है मुझे वो

हार जाएगा आखिर एक दिन

सिस्टम से अनजान लगता है मुझे वो !!!!


सिस्टम में शामिल है सभी

रिश्वत लेना और देना करते हैं सभी

व्यवहार में शामिल किया गया है

बुरा कहें न कभी !!!!

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