poem of love_
मैं बांध न पाया
अपना प्रेम
अपूर्ण रह गया
मेरा प्रेम
दिन के उजाले में
जब भी ढूंढता हूॅं
खलल पड़ जाती है
किसी की
शोर सुनाई देती है
इस दुनिया की
भीड़ की
तरह-तरह की
दिन के उजाले में
इसलिए तुम आना
रात की तनहाई में
जब मैं ख्वाब बुनूं
और करवटें बदलूं
मुझे गुदगुदाना तुम
रात भर
फुर्सत से
जब भीड़ सोती रहेगी
हम बातें करेंगे
दुनिया भर की
अपनी जिंदगी की
इस तरह
ख्वाबों भरे नींदों से
मेरा प्रेम
पूर्णता पाएगा
चैन की !!!!
poem of love_
तुम आना जब तुम्हें लगे
फुर्सत
दुनिया से बेपरवाह होकर
मेरे अहसास में
डुबने के लिए
जहां से न उभरे
एक बार डुब जाने के बाद
इतनी फुर्सत से आना !!!
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