जिंदगी Kavita Zindagi

Kavita Zindagi

 जिंदगी देख

मैंने तुझे जी गया

सुख-दुख सभी पी गया

तुम जैसे चाहो स्वीकार है

तेरे हर रंग से मुझे प्यार है

कभी ठहरो मेरे पास

तुझे सांसों में सवार लूॅं

तुझे अपने अहसासों में उतार लूॅं

जिंदगी देख

इतनी जल्दी बेवफ़ाई न करना

तुम आ जाना पास मेरे

जब भी मैं तुझे आवाज दूॅं !!!


और अंत में

मैंने कुछ नहीं कहा

अंतिम विदा ले ली

मैंने कोशिश की

जितनी ज़रूरी थी

और वरण कर लिया

जिंदगी तुमने

जितनी थी !!!


जिंदगी तुम क्षणिक क्यों हो

मृत्यु जैसे शास्वत होनी थी !!!


बुझा हुआ आग

राख बन जाता है

बुझे रिश्ते

अनजान !!!

मूल स्वभाव ही ऐसा है 

मृत्यु ही सत्य है 

जिंदगी चार दिन की शतरंज

कभी जीत कभी मात है !!!

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