Ghazal Prem Hindi
मेरी गलतियों को सुधारा बहुत है
उसे मुझसे शायद प्यार बहुत है
नजरअंदाज किया मेरी गुस्ताखियों को
उसे शायद मुझसे उम्मीद बहुत है
ऐसे भला कौन चाहता है आजकल
उसके सीने में इश्क बहुत है
प्यार करता हूॅं मैं कितना तुमसे
पहचानो मेरी ऑंखों में जवाब बहुत है !!
Ghazal Prem Hindi
तुम स्पर्श करना इस तरह
मैं उतर जाऊं तेरी रुह में जिस तरह
न जाने क्यों भटकते हैं
सोचों ! प्यार मिल जाए किस तरह
अब आए मेरी बाहों में
बादल संग बरखा जिस तरह
अभी आने लगी है आंच मुझे उस आग की
अब जल रहा हूं पतंगें जिस तरह !!!!
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