बहती गंगा Article Dead bodies in the flowing Ganges

 गंगा में बहती लाशें Article Dead bodies in the flowing Ganges 

विगत दो वर्षों से बुहान वायरस सारे विश्व को अपने चपेट में ले रखा है । जिसने सारे विश्व में मौत का कहर ढाया हुआ है । चारों ओर त्राहि माम - त्राहि माम मचाए हुए हैं । हर कोई भय में है । रिश्तों में दूरियां पैदा कर दी है । जिससे भारत भी अछूता नहीं है । आज हर कोई एक दूसरे के करीब जाने से डरते हैं । जो कुछ हद तक सही है ।

Article Dead bodies in the flowing Ganges

 
दो हजार इक्कीस भारत के लिए बहुत ही बुरा  है । जहां सरकारें बुहान वायरस को नियंत्रित करने में असफल रही है । इसलिए बुद्धिजीवी लोग सरकारों को कोस रही है । देश का विपक्ष निरंतर केन्द्रीय सरकार को निकम्मा सिद्ध करने में जुटे हैं । जिसके आलोचना में सरकार की निकम्मापन कम,, थकावट और भय अधिक बढ़ती है । ऐसा लगता है कि हमारे देश में कुछ भी व्यवस्था नहीं है । हम लोग बिना किसी सहारा के हैं । बेबस,,, असहाय !!
जो बिल्कुल ही गलत है । सारे जिम्मेदारी केवल सरकार की है ।कहना गलत है । 

अफ़वाह और ज्ञान 


बीमार जनता हो रही है । और दोष सरकार पर निकाल रहे हैं । हम बीमार पड़ेंगे । हमारी इलाज की व्यवस्था सरकार करेगी । जिसमें सरकार यदि असफल हो जाती है तो  जनता मर जाते हैं । यह कहना सरासर ग़लत है । यदि सबकुछ सरकार ही करें और जनता अपने अपनी नैतिक जिम्मेदारियों से मुंह फेर लें तो कोई भी सरकार हो । कभी भी व्यवस्था को सुदृढ नहीं कर सकते हैं । 
दो हजार इक्कीस का करोना काल कई लोगों की सोच और समाजिक जिम्मेदारी को उघेड़ के रख दिया । लोग कितने जवाबदेही है । सबकी पोल खुल गई । 
जनता खुले रूप में घुमे फिरे यहां-वहां,, बिना मास्क के । बीमारी फैल गई तो सरकार की जिम्मेदारी है और जनता की मानों कुछ भी नहीं है । 
विपक्ष और वर्तमान सरकार को न चाहने वाले लोग अफवाह इस तरह फैला रहे हैं मानों वो होते तो सबकुछ सम्हाल लेते । ये आक्सीजन की कमी,,बेड की व्यवस्था,, लाशों का समुचित निपटान आदि सारी व्यवस्था केवल सरकार की है । 
कभी गंगा नदी में लाशें बह रही थी ।लोग जोर शोर से उसे वायरल कर रहे थे । यह कहके कि देखो ये सरकार लाशों का भी व्यवस्था नहीं कर पा रही है और लोग मान भी रहे थे । लेकिन जनता को भी इतने मासूम नहीं होना चाहिए कि लोग आखिर अपने परिजनों को (मरने के बाद) क्यों इस तरह फेंक रहे हैं ? क्या उनमें संवेदना नहीं है ? यदि सरकार फेंक रही है तो नदी में ही क्यों ? कई और जगह है जहां लाशों को छुपा सकती हैं । लेकिन ऐसा सोचने वाला कोई नहीं था । सिर्फ सवाल । 
आखिरकार बाद में पता चल ही गया कि ये लाशें परम्परा का हिस्सा है । किसी समुदाय का । और ये मुद्दा ख़त्म हो गया । लेकिन जनता को सोचना चाहिए कि कोई है जो अफवाह फैला रहे हैं । जो नहीं चाहता कि देश का मान-सम्मान बना रहे । 
जब वैक्सीन बनी तब भी लोग अफवाह फैला रहते थे लेकिन धीरे-धीरे सारे सवाल उठाने वालो ने ही चुपके-चुपके वैक्सीन लगवा ली । 
फिर भी जनता को सही बातों पर ध्यान नहीं गया । कहने का मतलब विपक्ष कुछ भी करें और जनता उसकी झूठी बातों को मान लें,,। सोशल मीडिया जो पैसों के लिए कुछ भी बातों को टॉप पे लाकर प्रचारित कर दें । और हम आप उसे मान लें । उसके बाद सोचना छोड़ दें । तब तो ये देश का दुर्भाग्य है । 
कहने का मतलब बहती गंगा में हर कोई हाथ धोना चाहते हैं । शर्त है आप कितनी सच्चाई का पता लगाते हैं ।
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