poem_18- दोगलापन -यही है कि अपने लिए सच और झूठ का प्रयोग अत्यंत गुप्त तरीके से करना है । जिसमें झूठ और सच का प्रयोग चालाकी से स्वहितों को ध्यान में रख कर किया जाता है । अपने हितों के लिए रक्षात्मक और दूसरों के लिए आक्रामक रुख कर लिया जाता है । अपने विरोधियों को थकाने, हराने के लिए ऐसे शब्दों का चयन करते हैं । जिसे सभ्य इंसान कहने में संकुचाते हैं । लेकिन वहीं दोगलापन लिए हुए आदमी आसानी से कह देते हैं । जबकि उसी बुराई को अपनो के प्रति गर्व के साथ ।
poem_
दोगलापन,, नीयत का -
तुम्हें अहसास नहीं
जो मुझे अहसास है
इसलिए तुम आसानी से
सवाल उठा देते हो
मेरी आस्था पर
जबकि तुम्हारे सवाल
निष्पक्ष नहीं है
किसी दूसरे पर
ऑंखें बंद कर लेना तुम्हारा
समर्थन है तुम्हारा
किसी के
गले काटने के बावजूद भी
तुम्हारा मुस्कुराना
दोगलापन है तुम्हारा !!
.
उसका दावा था कि
वह सच बोलता है
जबकि हमें महसूस था
उसका दावा
उन लोगों पर नहीं था
जो गला काट देते हैं !!
poem_दोगलापन
अपने पराए के चक्कर में
बुद्धिजीवी भूल जाते हैं
सच
एक ही बातों को
दो तरह कह जाते हैं
शायद !
नफ़रत है उससे
इसलिए कह जाते हैं !!!
पढ़ाई लिखाई को
शिक्षित होने का प्रमाण मानना
कितनी बेवकूफी की बातें हैं
जबकि पढ़ें लिखे लोग
बुराई को सभ्यता के साथ करते हैं !!!!
-राजकपूर राजपूत
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