Social ghazal
जैसे जैसे हम बड़े होते गए
दिल से कम दिमाग के होते गए
वो बचपन की हॅंसी कितने मासूम थे
आज हंसी बनावटी है चालक होते गए
सोचना क्या शुरू किया तेरे बारे में
सच कम झूठ के शिकार होते गए
कच्चे मकानों जैसी अब ठंडक कहॉं
धीरे-धीरे मकान कांक्रीट के होते गए
ऐसी बहस में बड़ी है ये सारी दुनिया
जवाब कम है सवाल के होते गए
स्वार्थो में अफवाह फैलाती है दुनिया
सच दिखता नहीं झूठ के शिकार होते गए !!!
Social ghazal
मैं देख पाता हूॅं बचपन
लेकिन गुजर गया है मेरा बचपन
हमारा शौक ही खुशमिजाजी था
हालांकि आजकल मोबाइल में है बचपन
मिलजुल कर खेला करते थे
लेकिन आजकल अकेले में है बचपन
शिकायत नहीं है मेरे बचपन से
बेशक मिलता नहीं है मेरे जैसे बचपन !!!!
---राजकपूर राजपूत''राज''
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