हमारी परंपराएं hamari-paranpraye

hamari-paranpraye- सभी भारतीय परंपराएं जितने अच्छे हैं । उतनी दुनिया के किसी भी परंपराएं नहीं है ।सृष्टि के सारे जीव जंतुओं का सम्मान है । हमारी परंपराओं में । वृक्षों से लेकर जानवरों की पूजा की जाती है । कुछ को तो भगवान के तुल्य माना गया है । उसके गुण और लाभ किसी वरदान से कम नहीं है और शेष बचे वृक्ष, जानवरों का बहुत सम्मान है । सबके हृदय में । जो जानते हैं उसके महत्व को ।  कहते हैं चौरासी लाख योनियों के बाद मानव जीवन की प्राप्ति होती है । हालांकि कुछ बुद्धिजीवियों को अतार्किक लग सकते हैं । बुरा भी लग सकते हैं । ये उनकी समझ है जिसे हमारे देश की संस्कृति पसंद नहीं है । क्योंकि जो जानते हैं वहीं मानते हैं ।  जिसने कभी आदर नहीं किया वो क्या जाने । 

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हालांकि उनकी दृष्टि हमारी परंपराओं के भाव में नहीं जाती है । जिसके वजह से उसकी मानसिकताओं में परिवर्तन नहीं ला सकते हैं । और न ही इसके मानने वालों की दृष्टि जाती है । जिससे ऐसे लोगों को जवाब दे सके । जबकि मूल भाव तो सम्पूर्ण जीवों को एक ही मानने के लिए प्रेरित करते हैं । हम और आप कहीं न कहीं इन्हीं वृक्षों और जानवरों से होकर आए हैं । इनके दुःख, तकलीफों को भोगे हैं । जैसे इंसान है वैसे ही अन्य जीव- जंतु है । इस भाव में ही सबके सम्मान की बातें छुपी हुई है । सम्पूर्ण जगत एक है ।
केवल प्रकृति भिन्न है । लेकिन जीव एक है । जिसकी उपस्थिति में क्रिया करते हैं । जिसके शरीर से निकलते ही सजीव, निर्जीव हो जाते हैं । 
सभी जीव-जंतु वो सभी क्रियाएं करते हैं जो इंसान करते हैं । प्रजनन से लेकर खाना पीना तक । ऊतकों का निर्माण और उसका टूटना । जैसे पेड़ों के छाल की परतें तो इंसानों के शरीर से रूसी , जैसे सांप की केंचुलियॉं छूटती है ।  केवल क्रियान्वयन में अंतर है । रंग-रूप और ढंग में अंतर है । लेकिन एक ही है जीव ।

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ईश्वर ने सृष्टि का निर्माण केवल इंसानों को देखकर नहीं किया है । उसके लिए सम्पूर्ण सृष्टि एक है । प्रकृति को रच के उसके केन्द्र में रहकर संचालन ऐसे करते हैं कि किसी को दिखाई न दे । 

केवल देखने की क्षमता इंसानों को दी है । वो भी उसे जिसकी दृष्टि ने क्षमताएं हासिल किए है । जिनके लिए सम्पूर्ण विश्व एक वसुदेव कुटुंबकम् है । अर्थात् एक परिवार । 

हम क्यों न माने 
हमारी परंपराएं 
हमने तो पेड़ों 
चिड़ियों, पत्थरों को पूजा है 
अपने जैसे 
जीवन देखा है 
तुम्हें लगता होगा 
व्यर्थ 
क्योंकि तुमने इसको 
खाने को देखा है 
हम इंसान हैं 
तुम जानवर 
जो देते हैं 
हमने उसका आदर किया !!!!

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---राजकपूर राजपूत''


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