सत्य और आप Truth and You Articles

Truth and You Articles सत्य की पुष्टि किसी के कहने से नहीं होती है और न ही किसी के तर्को से की जाती है । उसे महसूस किया जाता है ,, हृदय से । बेशक आप जब तक महसूस न करे । आपकी अनुभूति भ्रमित हो सकती है । लेकिन आप जब भी ढूॅंढने की कोशिश करते हैं । सत्य को,, आपकी सोच के इर्द-गिर्द अनजाने में स्पर्श होते । जिससे आप बैचैन हो सकते हैं ।

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 जब तक आपको स्पष्ट दिखाई न दे । ठीक उसी तरह जिस तरह से कोई बात मुॅंह में आने के बाद  भी भूल जाते हैं । लेकिन मन जानता है । यही कहीं है वो बात। जो परेशान कर रहा है मगर याद नहीं आ रही है ।
जब भी भूली बात याद आती है । मन हल्का हो जाता है ।  हालांकि कई लोग के इंगित के बावजूद याद नहीं आते हैं । जब तक आपकी स्मृति के दृष्टि में उसका चित्र न उभरे । उनके आकार,, स्वरूप आदि का भान न हो । 
स्मृति में सही चित्र का निर्माण आपकी समझ की निर्भरता है । आपकी ग्रहणशीलता है । आपने अपने भीतर आने वाले विचार की अहमियत या ज़रूरत कितनी दी है । उसकी उपयोगिता का आकलन कितना किए हो । जब तक भान नहीं होगा । ज्ञान नहीं होगा । 
एक बार इस दृष्टिकोण का निर्माण हो जाने के बाद आप सहज ज्ञान की परंपरा में जुड़ जाएंगे । सत्य का स्पर्श आसानी से होगा । 
हर चीज़ में तर्क होता है । विश्वास और आस्था के आधार पर फर्क होता है । कुछ लोग किसी पसंदीदा व्यक्तियों के बारे में नहीं बोल सकते हैं । एजेंडे के तहत ।
हर बात तर्क नहीं होता है । कुछ में दोगले लोगों की अनुचित गतिविधियां होती है । जिसे हर कोई नहीं समझ पाते हैं । 
---राजकपूर राजपूत'राज'


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