वैज्ञानिक नजरों से From Scientific Perspective - Poetry

From Scientific Perspective - Poetry 
वैज्ञानिक नजरों से देखोगें 
तो खोखला नजर आएगा शरीर 
असंख्य कोशिकाओं और ऊतको से निर्मित 
सारे भाव हारमोंन्स की उत्पत्ति है  
ठीक वैसे ही परिभाषित है 
जैसे हमारे धर्मो में 
सारा जगत एक माया है 
शरीर मिट्टी की काया है 
हालाकि धर्म के तर्क
सत्य की कसौटी में 
उतने खरे नहीं उतरते 
जितने विज्ञान 
फिर भी विज्ञान के दावों से 
उदासीन हो जाते हैं इंसान
महत्वहीन समान
जीवन उत्साहीन
क्योंकि खुशी भी हार्मोन्स है
प्रेम की तरह !!!
जो जितने अय्याश है
उसके तर्क खास है
जिसे जीना है अश्लिलता में
उसके कई तर्क पास है
हमने न देखा ऐसी सोच
हक़ से उच्छृंखलता की आस है
वो बुरे हैं लेकिन अच्छे बन गए
जिनके चरित्र खल्लास है
दुनिया को उपदेश देते हैं
जिनकी हालत खल्लास है
उसके वैज्ञानिक भरी सोच
 देश, संस्कृति के लिए नाश है !!!


From Scientific Perspective - Poetry


उसकी वैज्ञानिकता
उसकी शिक्षित होने का ढंग
बस दूसरों के लिए
अपने लिए
स्वार्थ चालाकी
मुफ्तखोरी, बेइमानी
धोखेबाजी है !!!

मंदिर की सीढ़ियां
पढ़ें लिखें लोगों के
बुढ़े मां बाप का सहारा है
जो भगवान के सामने नहीं
आदमियों से
दया कृपा की उम्मीद करते हैं !!!

कमाल है आजकल के
तर्कशील लोगों में
जो बिकनी और बुर्का का
समर्थन अलग -अलग ऐंगल से करते हैं !!!


अभी शिक्षित होना सीखा नहीं है
इसलिए उसे सत्य सबमें दिखा नहीं है
उसका मानना है सरल व्यक्तियों पर हमला करना 
मुर्खे, आतंकी पर मुंह खोला नहीं है !!!

मैं आज तक समझ नहीं पाया उसकी समझदारी
उसकी बातें कुछ और नीयत में गद्दारी
सवाल उठाते हैं बुद्धिजीवी जैसे मगर
लगता है जैसे देश संस्कृति के साथ मक्कारी
उसकी बातें बड़ी - बड़ी है मगर
कभी दिखती नहीं है खुद्दारी !!!

इतने ही अच्छे हो
तो क्या चरित्र से भी सच्चे हो
भरोसा कौन करेगा तुझ पर
मतलब आ जाने पर तुम कच्चे हो !!!!

इस ज़माने में ज्ञान बहुत सस्ते हैं
फेसबुक और ट्विटर के रस्ते हैं
जिसने जितना बोलना सीखा है
बड़ी - बड़ी उसी के वास्ते हैं !!!

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