जरूरी नहीं है हर भीड़ में crowd and love poetry

crowd and love poetry 


जरूरी नहीं है कि
हर भीड़ या समूह
सब सही हो
खासकर आज के जमाने में
जहॉं कुछ समूह या भीड़
अपने निजी स्वार्थों के लिए
बहुत बड़े समूहों को
गुमराह कर देते हैं

जरूरी नहीं है कि
पढ़ें लिखे लोग
समझदार हो
आज के जमाने में
कुछ पढ़ें लिखे तो
ऐसे लगते हैं कि
सबसे बड़ा गवार हो

जरूरी नहीं है कि
आधुनिकता के युग में
अधिक सभ्यता हो
रिश्वतखोरी का चलन
ऐसे बढ़े हैं
हर इंसान के 
व्यवहार में चढ़े हैं
और आदमी
नीचे गिरता गया है
सभ्यता के साथ

जरूरी नहीं है कि
हर मीठा  जहर हो
जरूरी नहीं है कि
झुकी नज़रों में प्यार हो
आजकल तो 
वासनाएं ही प्यार है
दिल नहीं , दिमाग से
हर काम है

आजकल के रिश्ते तो
हिसाब किताब में टिका है
चंद पैसों के खातिर बिका है
इसलिए भरोसा नहीं किसी पर
आजकल !!!

जरूरी नहीं 


जरूरी नहीं हर भीड़ में तुम हो
जहां मुझे अपनापन मिले
खुशियों का संसार मिले
मैं तो अलग राह चलता हूॅं
मेरी तनहाई में
तेरा प्यार मिले
जब भी मैं भीड़ से अलग होता हूॅं
तेरी यादों का संसार मिले !!!
---राजकपूर राजपूत








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