for happiness poem Hindi
उसके हर जद्दोजहद में
पूरी ईमानदारी थी
उसकी मेहनत में
अजीब सी खुशियाॅ॑ थी
जब भी वह अपने
मजबूत पैरों से
रिक्शा का
पैंडल मारते थे
ढलान की चढ़ाई पर
बैठें हुए सवारी को
खींच नहीं पाते थे
तो...
अपने रिक्शे से उतर कर
खींचना शुरू कर देते थे
बेशक..
सबको मंजिल पहुंचाने के बाद
आपको लग सकता है
इतनी मेहनत करने के बाद
कितना इकट्ठा कर लेंगे
सवारी के चेहरे पर
मलाल हो सकता है
इस बात पर
कि...
दो पैसे या चार पैसे..
लेकिन वो इन्हीं पैसों से
अपने परिवार को
रूखी-सूखी खुशियाॅ॑ देते हैं
और हर सुबह निकल जाते हैं
अपनी मजबूत पैरों से
पैंडल मारते हुए
रूखी-सूखी खुशियों के खातिर
तलाश में !!!
बोहनी की तलाश
सुबह होते ही उसकी कोशिश थी
बोहनी जल्दी से हो जाय
दिन अच्छा गुजरेगा
कमाई बेहतर होगी
अपनी बोहनी की तलाश में
सुबह-सुबह एक रिक्शा वाला
हर झोला पकड़े हाथों को
आशा भरी नजरों से देखती है
बोहनी की लालसा में !!!
-----राजकपूर राजपूत'राज'
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