I Sing Myself, I Listen to Poetry Myself
मैं अपने अंदर ही ढूॅ॑ढता हूॕ॑
खुद गाता हूॅ॑ खुद सुनता हूॅ॑
अंतर नाद की प्रतिध्वनि को
भीतर ही महसूस करता हूॅ॑
अधरे रुखे हैं प्रेम के भूखे हैं
प्यासी नदी सी क्यों ढूॅढता हूॅ
जाने कब मिटेगी मेरी प्यास
अंतर्मन की पीड़ा से पूछता हूॅ॑
तेरी राह में हम निकल पड़े हैं
मिलोगे कभी सागर से पूछता हूॅ॑ !!!!
I Sing Myself, I Listen to Poetry Myself
ध्वनि जितनी तेज होगी
थिरकन उतनी बढ़ जाएगी
लोगों के कदम खुद-ब-खुद उठेंगे
नाचने के लिए
शायद ! धीमी आवाजें
हृदय के नसों को
उत्तेजित नहीं कर पाती है
तनहा कर देती है
इसलिए !
डीजे, लाउडस्पीकर का अविष्कार हुआ है
जिसे सुनने वाले भी पसंद करते हैं
नाचने वाले भी
देखने वाले भी
क्योंकि धीमी आवाजें
तन्हाई का पर्याय है
उदासी का पर्याय है
जिसकी आवाजें
जिस पर बीतती है
उसे ही सुनाई देती है
और जो कोई सुनते हैं
बोरियत महसूस करते हैं !!!
---राजकपूर राजपूत''राज''
1 टिप्पणियाँ
वाह वाह सुन्दर रचना सर जी नमस्कार
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