अवहेलना भाग 10

कल्याणी चुपचाप दीपक को देखने लगी । ना जाने क्यों उसे खुद ही गलती का अहसास होने लगा । और वो सोचने के लिए मजबूर हो गए ।  शायद ! मैंने अपनी बातों को कह नहीं पाई । मेरे मन में तो कोई ग़लत भावनाएं नहीं थी । समाज में जो वास्तविक स्थिति एक स्त्री या एक लड़की की होती है । उसी पर बात कही थी लेकिन मुझे ही गलत मानने लगे हैं । 
जिसे हम दिल से मानते हैं, उसकी ही बातें अच्छी लगती है । दीपक अपने घर परिवार में अपनी मां की बातों पर ही भरोसा करते हैं । उसे खुश करके ही संतुष्टि मिलती है । अपनी मां की बातों को काट नहीं सकते । उसकी सभी बातों में हां मिलाते हैं । उसकी नाराजगी से भय खाते हैं । जबकि उसके साथ ठीक विपरीत व्यवहार है ।
उसने कभी भी कल्याणी को दिल से नहीं चाहा था । चाहते तो उसकी गलतियों को सबके सामने चर्चा नहीं करते । उसे बातचीत करके समझा देते । कुछ टोकते । 
प्यार से । जिससे प्रेम होता है उसकी गलतियों को छुपाते हैं ना कि सबको बताते हैं ।वस्तु स्थिति से परिचय कराते ।  कोई बात दिल मेंं नहीं छिपाते । 
अपनी मां से बातचीत करने के बाद दीपक के मन में कुछ कडुवाहट आ गई थी । जिसके कारण वो कल्याणी से मुंह फेर रहे थे । 
लेकिन कल्याणी कुछ कर भी तो नहीं सकती थी जिससे वो खुश हो जाय । जिसके दिल में नफ़रत हो उसे समझाने में बहुत तकलीफ़ होती है । ख़ासकर तब जब सामने वाले आपको कमजोर समझते हो । 
कल्याणी को लगा कि अभी कुछ भी बातें करना उचित नहीं है । कुछ कहुंगी तो और गुस्सा करेंगे । इसलिए वे भी करवट बदल कर सो गई । अपने बच्चें के सिर पर हाथ फेरते हुए । 
दूसरे दिन सुबह जब उठी तो वहीं काम बर्तन,, झाड़ू-पोछा,खाना बनाना । वह पलंग पर बैठ कर सोचने लगी -हम औरतों का जीवन भी अजीब है । उठते ही काम । जो दिन भर में खत्म नहीं होते हैैं ।बारह महीने । वहीं पुरुष आराम से सोए रहते हैं । हाथों में चाय पकडाओ तब कहीं ऑ॑खें खुलती हैं ।
कल्याणी कभी भी दीपक के बारे में इस तरह नहीं सोची थी । वो तो हमेशा उसकी खुशी की दुआ करती थी ।   कुछ भी करें, खुश रहें ।  ना जाने क्यों उसके दिल में ऐसे ख्याल आ रहे थे कि दीपक बहुत बूरे इंसान है । जिसे वो समझ नहीं पा रही थी । दिल में कुछ भारीपन महसूस हो रहा था ।
जब अपने कमरे से बाहर निकली तो उसे अपराधिक बोध हो रहा था । मानों उसने कोई बहुत बड़ी गलती कर दी है ।  
शालनी जब उसके पास आई तो तुरंत मुंह बनाते हुए चली गई । मानों उसे देखना भी बुरा लग रहा था । उसने इस तरह एहसास जताने की कोशिश की मानों उसे कोई फर्क नहीं पड़ा है । तुम्हारी सोच बुरी है ।  वह घर के अन्य लोगों से हंस के बातें कर रहे थे । 
सासू मां पहले जैसी थी । उनका व्यवहार वैसे ही था जैसे पहले । बहुत गम्भीर औरत थी । घर में कैसे शासन करना है, वो जानती थी । शायद ! दीपक को अपना विचार बता दिए थे । कल्याणी को समझा के रखें ।
 
सासू मां के व्यवहार से कल्याणी को मानसिक संतुष्टि मिली हालांकि वह जानती थी कि सासू मां उसे नहीं मानती है । फिर भी उसे अच्छा लग रहा था ।कम से कम सासू मां के मन में उतनी बुरी सोच नहीं है ।  यदि दीपक कुछ कहेंगे तो कोई बात नहीं है । उसे मैं समझाने का प्रयास करुंगी । उसकी बातों को क्यों बुरा मानूं  ! 
खुद के अंदर चल रही अंतर्द्वंदों को खुद ही ढांढस बांधती ।
कुछ देर काम करने के बाद वह अनिता के पास आ गई । जहां वो काम कर रही थी । शायद,मन में उठ रहे कुछ सवालों का जवाब ढूंढ़ना था या फिर मानसिक तसल्ली ।

 कुछ अनीता के कामों में मदद की । इधर-उधर की बातें करते हुए । अनीता ही थी जिससे वो बातें करके मन को हल्का कर लेती थी । इस घर में कोई सुनने वाला नहीं था
उसके सिवा । उसकी सहेली थी वो । 

"कल की बातें तुम्हें भी बुरी लगी क्या"

"कौन सी बातें दीदी ! "

"शालनी वाली,, जो प्रकाश कह रहे थे !!"
 
"वो तो खाना खा कर चले गए ना, शायद !!मैंने ध्यान नहीं दिया । क्या कह रहे थे वो ? "

"कुछ नहीं, ऐसे ही मैं कह रही थी ।"

कल्याणी को लगा कि अनीता को तो कुछ पता नहीं है । इस बारे में उनसे बातें करना बेकार है । वह चुप हो गई । अनीता भी कुछ नहीं बोली । कुछ देर के बाद उसने अपने पति के बारे में बातें करना शुरू कर दी । जिस पर कल्याणी की कोई रूचि नहीं थी । उसका तो ध्यान उसी बात पर टिकी हुई थी । जो दीपक ने कहा था । 
इस घर के लोग कैसे हैं जो बहुओं को अपना नहीं समझते हैं । घर की बात यदि जान लेंगे तो क्या हो जाएगी लेकिन नहीं हम लोग पराए हैं । कोई भी बात हम लोगों तक पहुंच नहीं पाती है । ना जाने कब एक लड़की के जीवन में अपना घर मिलते हैं । जब तक मां बाप के घर में रहो तो पराई,, ससुराल में आने के बाद भी पराई  ।
मायके में रहो तो ससुराल और ससुराल में रहो तो मायके की याद सभी दिलाते रहते हैं । अपना घर कहीं है ही नहीं । 
अनीता की बातों पर उसका कोई ध्यान नहीं रहा । केवल "हां,, हूं'" में ही जवाब दे रही थी । कुछ देर उसके साथ काम करने के बाद अपने कमरे में आ कर आराम करने लगी  । 
कुछ देर बाद वह अपने कमरे से बाहर आ गई । बहुओं को ऐसे काम के समय आराम नहीं करना चाहिए । जजता नहीं । 
बाहर आते ही उसे एक कमरे में आवाजें सुनाई दे रही थी । मन किया क्यों ना सुना जाय । वहां क्या बातें हो रही है ? फिर सोचती- मेरी ही बुराई कर रहे होंगे । उसे क्या सुनना ?
इसी असमंजस में सोचते सोचते वह इतने करीब आ गए कि आवाजें स्पष्ट सुनाई देने लगी । घर की ही बातें हो रही थी ।
सासू मां कह रही थी-
" कल्याणी भी खुद को बहुत होशियार समझती है । बहू है तो बहू जैसी रहे । घर की मालकिन बनने की कोशिश ना करें । बेवजह की पर तोहमत ना लगाएं । "
उसकी बातों से नफ़रत साफ़ झलक रही थी । जो बात सामने नहीं कही थी वो सिर्फ़ उसकी नफ़रत थी । जिसे  मानते हैं,, उसके सामने ही तो कह रहे थे । मुझसे ज्यादा तो अनीता को मानती है ।

"ज्यादा गरीब लोगों में रिश्तों की समझ नहीं होती है । खाने-पीने का जुगाड में ही समय गुजर जाते हैं । रिश्ते कैसे निभाते है उसके लिए समय ही कहां है उनके पास , जो रिश्तों को समझें ।"अनीता ने कहा ।
शायद ! अनीता को सब कुछ पहले से मालूम थी या फिर अभी अभी । जिसके वजह से ये सब कह रही है ।   उसकी बातों को सुनकर कल्याणी को बहुत थकावट महसूस हो रही थी । आखिर वो क्यों ??

क्रमशः
---राजकपूर राजपूत''राज''
 

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