ढूॅ॑ढ़ा हूॅ॑ बहुत और मुस्कुराई जिंदगी
वह धूप में बदन जलाता रहा दिनभर
बादलों की ओट से हॅ॑सती रही जिंदगी
सुकून जब भी चाहा तो संवारा हूॅ॑ तुम्हें
मोहब्बत के दर्द में भी पाया हूॅ॑ जिंदगी
वक्त ने परखा बहुत लेकिन मैं हारा नहीं
मेरी कोशिशों के आगे डरती है जिंदगी
---राजकपूर राजपूत''राज''
1 टिप्पणियाँ
Bahut khub
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