धुऑ॑

अभी-अभी भाईयों में जमीन जायदाद का बंटवारा हुआ था । तो लाजमी है कि कुछ बातों में शिकवा शिकायत रह जाती हैं । किसी को अच्छी खेती तो किसी के पास कुछ जायदाद ज्यादा मिल जाते है । बंटवारे के समय कुछ बातें ऐसी हो जाती है कि भूलाएं नहीं जाती हैं । कभी जिंदगी में एक दूसरे से बात ही ना करें ऐसा लगता है ।  खैर ये सब भाइयों के बीच मेंं होता है । जिसे हीरा अच्छी तरह से जानते थे ।
वह बंटवारा के समय हुई सभी बातों को भूलकर आगे के बारे में सोचते थे । दिनभर अपने कामों पर ही ध्यान देते थे । आगे भविष्य को कैसे संवारे इसी की चिंता करते । उसकी कोशिश रहती थी कि वह अपने घर परिवार में खुशी से रहें । लेकिन उसकी पत्नी (संध्या)  रात में सोते समय भाईयों की बातें निकाल देती थी । कहती:-
" तेरा भाई दिनभर हम लोगों की बुराई करते हैं । कहते हैं कि जमीन-जायदाद हम लोगों के हिस्से में ज्यादा पड़े हैं । जबकि वे लोग खुद ही ज्यादा रखें हैं । हम लोग तो ठगे गए  । "
हीरा उसकी बातों को कुछ महत्त्व नहीं देते ।उसकी इच्छा थी कि कुछ काम धंधों के बारे में बातें करते । लेकिन वो ऐसी बातें नहीं करती । उसके दिल में तो बस भाईयों को कोसना...! इसलिए उसके हाॅ॑ में हाॅ॑ मिला देते थे ।

 जिससे संध्या नाराज हो जाती थी । सभी कुछ तो यही कर रहे हैं । इसे ही हमारी चिंता नहीं तो फिर दूसरों के क्या भरोसा..! खुद को उपेक्षित महसूस कर जाती ।

जिसका असर यह हुआ कि वह चिड़चिड़ी सी हो गई । बच्चों और अपने पति से सीधे बात नहीं करती । जब भी कुछ बातें होती तो उसके बोली में अजीब-सी उग्रता रहती थी । जिसे देख हीरा को बहुत दुःख होता था । पहले ऐसी नहीं थी । आखिर ये ऐसा क्यों करती है ..? कैसे पता लगा लेती है वह मेरे भाईयों की बात .? दिनभर घर में रहती है । किसी के घरों में भी बैठने नहीं जाती है । फिर भी..!

हीरा की सोच लाजमी था । पति-पत्नी के बीच मेंं व्यर्थ की बातें हो जिसका कोई औचित्य नहीं है । बच्चों के प्रति उनका व्यवहार भी कर्कश होने लगा था ।
 
आखिर एक दिन हीरा घर में बैठे टीवी देख रहा था । तब संध्या आई और उसे घर से लगे बाड़ी के पास ले गया । जहाॅ॑ भाई के जमीन को अलग करने के लिए बाउंड्री वॉल बनाया गया था ।  जहाॅ॑ से बड़े भाई के घरों में होने वाली बातें स्पष्ट सुनाई देती थी । 
"क्या हो गया..?कहाॅ॑ ले जा रहे हो..?" हीरा को बहुत अचरज लग रहा था ।
दीवाल के पास खड़ा करके कहने लगी:-"सुन,,, अब सारी बात । कितना हम लोगों के बारे में बातचीत करते हैं । " उसकी बातों में गर्वोक्ति के भाव थे । मानों किसी सच्चाई से पर्दा उठा रही हो । शायद इसी जगह से सारी बातें सुनती है । बेवकूफ ।  

दीवाल के उस पार से आवाजें आ रही थी । बड़े भाई कह रहा था कि छोटे भाई (हीरा)का काम धंधा अच्छा चल रहा है । वो अपनी जिंदगी आराम से गुजार लेंगे। हम लोग सिर्फ खेती बाड़ी के भरोसे है । जो ऊपर वाले की मर्जी पर निर्भर है ।
   
जिस पर भाभी कह रही थी कि उसे दिए हो तुम लोगों ने  ही,,,,, जिससे उसकी जिंदगी आसान हो गई है । खुद दुकान रख लेते,,,, लेकिन उसके बदले जमीन मांगे हो । 
 जिसे सुन बड़े भाई चूप हो गया । बंटवारा होने के बाद भी कुछ लोग बहुत हिसाब किताब करते हैं । और हाॅ॑ संतुष्ट कौन होता है,,, भाई बंटवारे में ।

हीरा को ये सब बातें अच्छा नहीं लग रहा था । वह संध्या को वहाॅ॑ से ले आया । जबकि उसकी इच्छा और सुनने की थी ।
 
"ऐसी बातों का कोई मतलब ही नहीं और केवल बातें ही तो कर रहे हैं । खेती बाड़ी में पैसा साल में एक दो बार ही मिलते हैं । धंधा करने वालों के जेबों में दो पैसा हमेशा रहते हैं ।इस बात को गलत कहना सही नहीं  । "

"ऐसी ही बातें करते रहेंगे । गांव बस्ती में हम लोगों को बदनाम कर रहे हैं । क्या गुपचुप तरीके से बंटवारा हुआ है ..? पूरे रिश्तें-नातों के सामने हुआ है । उस दिन तो महान बने थे । कहने लगें कि काम धंधा के बारे में ज्यादा समझ नहीं है जिसका है उसे दें दिया जाय । बदलें मैं मुझे कुछ जमीन दे दो । आज सोच रहे हैं । और तुम अपने भाइयों के पक्ष में मत लो । " संध्या का बातों में नाराजगी थी । नफ़रत थी,, बड़े भाई के प्रति ।

"तो क्या करें..! बताओं । फिर बंटवारा करवाएं..? जब किसी से गांव बस्ती में लड़ाई होगी ना, तो भाई को भी दर्द महसूस होगा । कोई दूसरा नहीं आएगा । साथ देने । आखिर अपने तो अपने होते हैं । "

"ये तो समय बताएगा .!कौन साथ देंगे । अभी तक दिन रात हमारी बुराई कर रहे हैं । जब दिल मेंं ही नफरत हो , उससे भरोसा करना ही बेकार है ।"

"तो क्या करें..! बताओं । जाकर झगड़ा करें । नहीं ना...! आखिर झगड़ा करेंगे तो क्या मिलेगा । दोनों का समय बर्बाद होगा । दिमाग़ अलग ।  गांव बस्ती वाले घर परिवार की हॅ॑सी उड़ाएंगे ।"

"तो क्या करें..! ऐसे ही सुनते रहे..!" दोनों सवाल जवाब करने लगे ।

"कौन कह रहा है सुनने के लिए । सुनें हो इसलिए तो अपने घर परिवार में किसी से ढ़ंग से बातचीत भी नहीं करते । बच्चों और मुझसे कड़वाहट भरी बातें करते हो । सोचों यदि भाईयों से झगड़े में उलझे रहेंगे तो कौन सा अपना हित होगा ।"

हीरा के बातों में नाराजगी थी । जिसे संध्या समझ रही थी । वह सोचने को मजबूर हो गई । लेकिन हीरा उसको ज्यादा परेशान करना चाहता था । उसने कहा:-
"इसमें गलती किसी का नहीं है । बचपन से साथ रहें भाई बहुत कुछ देते और लेते हैं । बंटवारे में वही प्रेम और साथ शिकायत बन जाती है । कुछ लोग शिकायत में अपना प्रेम दबा देते हैं । जैसे तुम कर रहे हो । उनके बातों का असर इतना है कि अपने बच्चों और मुझे भी भुल गई हो । कौन सही,, कौन गलत की पहचान भुल गई हो ।"

संध्या चुप हो गई । उसे लगा कि वह बहुत बड़ी गलती कर रही थी । व्यर्थ के बातों को सुनकर,,अपनो का साथ छोड़ रही है ।  शिकायत उसकी थी और खुद सुन रहे थे । पति जो कह रहे हैं वो सच ही तो था । उसकी बातें उसे झंकझोर दिया । 
फिर भी कुछ दिनों तक वह दीवाल के पास जाकर सुनने की कोशिश करती । हीरा देख के मुस्कुरा देते थे । जब संध्या कहती तो कह देते कि तुम पागल हो ।रोज रोज कहने और हॅ॑सने से संध्या अपमानित महसूस करती थी । 
इसलिए कुछ दिन बाद संध्या अपने जेठ और जेठानी की बातों को सुनने की कोशिश करना बन्द कर दी । अपने बच्चों और अपने पति के बीच ही रहती थी । 
समय के साथ बंटवारे की बात भुलते गए ।नए काम और जिम्मेदारी मेंं उसका भाई और हीरा फंसते गए । बंटवारे में जो आग सुलगी थी । उसका धुऑ॑ उड़ चुके थे । आज दोनों परिवार एक जगह बैठ के नई समस्याओं के हल ढूंढ़ते हैं । 
-राजकपूर राजपूत''राज''
धूंआ






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